
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक भीषण आतंकी हमले ने पूरे भारत को झकझोर दिया। इस हमले में 26 भारतीय पर्यटकों की जान चली गई, जिसने देश में गहरा आक्रोश पैदा किया। भारत ने इस हमले को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जोड़ा और त्वरित जवाबी कार्रवाई के रूप में “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया। 6-7 मई 2025 की रात भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में नौ आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए। भारत ने इन हमलों को आतंकवाद के खिलाफ एक सीमित और लक्षित सैन्य कार्रवाई के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें न तो पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया और न ही नागरिकों को कोई नुकसान पहुंचाया गया।
पाकिस्तान ने इस कार्रवाई का जवाब “ऑपरेशन बुनयान-उल-मरसूस” के तहत मिसाइल और ड्रोन हमलों के साथ दिया। अगले चार दिनों तक दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर तनाव और गोलीबारी का माहौल रहा। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका, ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की। 10 मई 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया मंच “ट्रुथ सोशल” पर दावा किया कि उनकी मध्यस्थता के कारण भारत और पाकिस्तान सीजफायर पर सहमत हुए। उन्होंने यह भी कहा कि वह कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए दोनों देशों के साथ काम करने को इच्छुक हैं।
ट्रम्प ने यह भी दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को व्यापार रोकने की धमकी दी थी, जिसके बाद दोनों देश सीजफायर के लिए राजी हुए। इस बयान ने भारत में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया, क्योंकि भारत ने हमेशा कश्मीर को एक द्विपक्षीय मुद्दा माना है और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार किया है।
विदेश मंत्रालय का स्पष्ट और दृढ़ बयान
13 मई 2025 को, भारत के विदेश मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर ट्रम्प के दावों का पूरी तरह खंडन किया। मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया:
- कश्मीर पर तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप अस्वीकार्य: भारत ने स्पष्ट किया कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा है। शिमला समझौते (1972) और लाहौर घोषणापत्र (1999) के तहत यह सहमति बनी है कि कश्मीर से संबंधित सभी विवादों का समाधान केवल दोनों देशों के बीच बातचीत के माध्यम से होगा। किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता न तो आवश्यक है और न ही स्वीकार्य।
- सीजफायर में व्यापार धमकी का कोई आधार नहीं: मंत्रालय ने ट्रम्प के व्यापार धमकी के दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि सीजफायर का निर्णय भारत और पाकिस्तान के बीच सीधे संवाद का परिणाम था। 10 मई 2025 को दोपहर 12:37 बजे पाकिस्तान के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) ने भारतीय समकक्ष से संपर्क किया और सीजफायर की मांग की। इसके बाद दोपहर 3:35 बजे दोनों पक्षों के बीच फोन पर बातचीत हुई, जिसमें सीजफायर पर सहमति बनी। इस प्रक्रिया में किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी, और न ही व्यापार रोकने की कोई धमकी दी गई।
- भारत की सैन्य कार्रवाई का प्रभाव: मंत्रालय ने बताया कि सीजफायर का मुख्य कारण भारतीय सेना की प्रभावी जवाबी कार्रवाई थी। ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने आतंकी ठिकानों को पूरी तरह नष्ट कर दिया, जिससे पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ। पाकिस्तानी वायुसेना के छह प्रमुख ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिसके बाद पाकिस्तान ने स्वयं सीजफायर की पहल की।
कश्मीर का ऐतिहासिक और वर्तमान संदर्भ
शिमला समझौता और द्विपक्षीय नीति
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद हुए शिमला समझौते में यह सहमति बनी कि दोनों देश अपने सभी विवादों, विशेष रूप से कश्मीर से संबंधित मुद्दों, को द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से सुलझाएंगे। इस समझौते में यह भी तय हुआ कि दोनों देश नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान करेंगे और इसे बदलने के लिए कोई एकतरफा सैन्य कार्रवाई नहीं करेंगे। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद लाहौर घोषणापत्र ने इस नीति को और मजबूती दी। भारत ने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय और आंतरिक मुद्दा है, जिसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।
भारत का दृढ़ रुख
भारत का स्पष्ट मानना है कि जम्मू-कश्मीर उसका अभिन्न हिस्सा है। 5 अगस्त 2019 को, भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा समाप्त किया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित कर दिया। इस कदम ने वैश्विक स्तर पर बहस को जन्म दिया, लेकिन भारत ने इसे अपना आंतरिक मामला करार दिया। पाकिस्तान ने इस निर्णय का विरोध किया और इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की कोशिश की, लेकिन अधिकांश देशों ने इसे भारत का आंतरिक मामला मानकर तटस्थ रुख अपनाया। भारत ने बार-बार दोहराया है कि वह आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर कायम रहेगा और पाकिस्तान को आतंकी संगठनों को समर्थन देने से रोकने के लिए हरसंभव कदम उठाएगा।
ट्रम्प का विवादास्पद रुख
यह पहली बार नहीं है जब ट्रम्प ने कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश की है। 2019 में भी उन्होंने दावा किया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर पर मध्यस्थता करने के लिए कहा था, जिसे भारत ने तत्काल खारिज कर दिया। ट्रम्प का हालिया बयान उसी पैटर्न का हिस्सा प्रतीत होता है, जहां वह भारत-पाकिस्तान संबंधों में अपनी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं। उनके व्यापार धमकी के दावे को भारत ने न केवल खारिज किया, बल्कि इसे अपनी संप्रभुता पर एक अनावश्यक टिप्पणी माना।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और अमेरिका की भूमिका
कूटनीतिक अवसरवाद?
ट्रम्प के बयानों को कई विश्लेषकों ने कूटनीतिक अवसरवाद का हिस्सा माना है। अमेरिका ने दक्षिण एशिया में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए भारत-पाकिस्तान तनाव को एक अवसर के रूप में देखा। ट्रम्प का व्यापार धमकी का दावा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर एक तरह का हमला था, जिसे भारत ने तुरंत खारिज कर दिया। भारतीय सूत्रों ने पुष्टि की कि अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत और पाकिस्तान के नेताओं से बातचीत की थी, लेकिन इनमें व्यापार या मध्यस्थता का कोई जिक्र नहीं हुआ। भारत ने सभी विदेशी नेताओं को वही जानकारी दी, जो वह सार्वजनिक मंचों पर दे रहा था।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान ने ट्रम्प की मध्यस्थता की पेशकश का स्वागत किया और इसे कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाने का अवसर माना। पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार ने कहा कि कश्मीर एक लंबे समय से चला आ रहा विवाद है, जिसका दक्षिण एशिया की शांति और सुरक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हालांकि, भारत ने इस रुख को पूरी तरह खारिज कर दिया और दोहराया कि कश्मीर पर कोई भी बातचीत केवल शिमला समझौते और लाहौर घोषणापत्र के ढांचे के भीतर होगी।
सीजफायर का उल्लंघन और भारत की त्वरित प्रतिक्रिया
सीजफायर लागू होने के कुछ ही घंटों बाद, 10 मई 2025 को पाकिस्तान ने इसका उल्लंघन किया। जम्मू और अन्य क्षेत्रों में पाकिस्तानी ड्रोन देखे गए, जिसके जवाब में भारत ने ब्लैकआउट लागू किया और त्वरित जवाबी कार्रवाई की। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह स्थिति की गंभीरता को समझे। उन्होंने कहा कि भारत किसी भी उकसावे का जवाब उसी की भाषा में देगा।
निहितार्थ और भविष्य की दिशा
विदेश मंत्रालय का बयान भारत की स्वतंत्र और मजबूत विदेश नीति का एक शक्तिशाली उदाहरण है। यह न केवल ट्रम्प के दावों का खंडन करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा। कश्मीर पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार करना भारत की उस नीति का हिस्सा है, जो शिमला समझौते से शुरू हुई और आज भी अडिग है।
ट्रम्प के बयानों ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक नया तनाव पैदा किया है। अमेरिका की बार-बार मध्यस्थता की पेशकश और भारत के लगातार खंडन से यह स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच कूटनीतिक दृष्टिकोण में मतभेद हैं। भविष्य में, भारत को अपनी स्थिति को और मजबूत करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रहना होगा। साथ ही, पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए तैयार रहना होगा, लेकिन यह बातचीत केवल द्विपक्षीय ढांचे के भीतर और भारत की शर्तों पर होनी चाहिए।
भारत का विदेश मंत्रालय का बयान न केवल ट्रम्प के दावों का खंडन करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अपनी संप्रभुता और स्वतंत्र विदेश नीति के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है। ऑपरेशन सिंदूर और सीजफायर की घटनाएं भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति और सैन्य ताकत को रेखांकित करती हैं। कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा करार देकर और बाहरी हस्तक्षेप को सिरे से नकारकर भारत ने एक बार फिर अपनी दृढ़ता का परिचय दिया है। यह बयान न केवल भारत की कूटनीतिक ताकत को दर्शाता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि भारत अपनी शर्तों पर और अपनी ताकत के बल पर अपने हितों की रक्षा करेगा।