
भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों का इतिहास रहा है, जिसमें सीमा विवाद, आतंकवाद और जल संसाधनों से जुड़े मुद्दे प्रमुख रहे हैं। हाल ही में, 10 मई 2025 को लागू हुए सीजफायर और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के फैसले ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। यह लेख भारत-पाकिस्तान संबंधों के इस नवीनतम अध्याय का विश्लेषण करता है, जिसमें सीजफायर, सीमा पर सैन्य तैनाती, और सिंधु जल समझौते से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है।
सीजफायर का अर्थ और इसका महत्व
सीजफायर एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें युद्धरत पक्ष सैन्य कार्रवाइयों को रोकने पर सहमत होते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई 2025 को लागू यह सीजफायर दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) के बीच हुई वार्ता का परिणाम था। इस समझौते के तहत थल, जल और वायु मार्ग से सभी हमले बंद करने का निर्णय लिया गया। यह कदम पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा उठाए गए सख्त कदमों, जैसे ऑपरेशन सिंदूर और सिंधु जल समझौते के निलंबन, के बाद आया।
सीजफायर का उद्देश्य तात्कालिक तनाव को कम करना है, लेकिन यह स्थायी शांति की गारंटी नहीं देता। भारत ने स्पष्ट किया है कि यह सीजफायर उसकी शर्तों पर लागू हुआ है, और वह आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख बनाए रखेगा। दोनों देशों के बीच 12 मई को होने वाली वार्ता में सीमा पर शांति और अन्य मुद्दों पर विचार-विमर्श होने की उम्मीद है।
सीमा पर सैन्य तैनाती की आवश्यकता
सीजफायर के बावजूद, नियंत्रण रेखा (LoC) और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं तैनात हैं। इसका प्रमुख कारण है दोनों देशों के बीच गहरे अविश्वास का माहौल और आतंकवाद का निरंतर खतरा। पहलगाम आतंकी हमले, जिसमें 26 लोग मारे गए, ने भारत को यह स्पष्ट संदेश दिया कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद अभी भी एक गंभीर चुनौती है। इस हमले के जवाब में भारत ने न केवल आतंकी ठिकानों पर हमला किया, बल्कि सिंधु जल समझौते को निलंबित कर एक कड़ा कूटनीतिक संदेश भी दिया।
पाकिस्तान ने भी अपनी सैन्य तैयारियों को कम नहीं किया है। दोनों देशों के बीच 1965, 1971 और 1999 के युद्धों का इतिहास इस तैनाती की रणनीतिक आवश्यकता को रेखांकित करता है। भारत का मानना है कि सैन्य तत्परता और आतंकवाद के खिलाफ सख्ती बनाए रखना अनिवार्य है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। सीजफायर केवल सैन्य कार्रवाइयों को रोकता है, लेकिन यह सीमा पर घुसपैठ या अन्य गतिविधियों को पूरी तरह समाप्त नहीं करता।
सिंधु जल समझौता: एक अवलोकन
सिंधु जल समझौता 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ एक ऐतिहासिक जल-बंटवारा समझौता है। इसके तहत सिंधु नदी बेसिन की छह नदियों—सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज—के पानी का बंटवारा किया गया। पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का 80% पानी और भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) का 20% पानी आवंटित हुआ। यह समझौता दोनों देशों के जल संसाधनों के उपयोग को नियंत्रित करता है और दशकों से दोनों देशों के बीच सहयोग का आधार रहा है।
22 अप्रैल 2025 को भारत ने इस समझौते को निलंबित करने का फैसला लिया। इसका कारण था पहलगाम आतंकी हमला, जिसे भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से जोड़ा। भारत ने तर्क दिया कि आतंकवाद को समर्थन देना समझौते की मूल भावना का उल्लंघन है। इस निलंबन के तहत भारत ने जल डेटा साझा करना, आयुक्तों की बैठकें और नई परियोजनाओं की सूचना देना बंद कर दिया।
निलंबन का पाकिस्तान पर प्रभाव
सिंधु जल समझौते का निलंबन पाकिस्तान के लिए गंभीर चुनौतियां ला सकता है। पाकिस्तान की 80% कृषि भूमि और उसकी विशाल आबादी सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों पर निर्भर है। निलंबन के संभावित प्रभाव इस प्रकार हैं:
- कृषि पर संकट: सिंधु नदी का पानी पाकिस्तान की सिंचाई प्रणाली की रीढ़ है। पानी की कमी से फसल उत्पादन में कमी आ सकती है, जिससे खाद्य संकट और आर्थिक अस्थिरता बढ़ेगी।
- ऊर्जा संकट: पाकिस्तान की कई जलविद्युत परियोजनाएं इन नदियों पर निर्भर हैं। पानी की आपूर्ति में कमी से बिजली उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
- प्रबंधन में कठिनाई: जल डेटा साझा न होने से बाढ़ और सूखे की चेतावनियों का प्रबंधन कठिन होगा, जिससे पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याएं बढ़ेंगी।
पाकिस्तानी किसानों और विशेषज्ञों ने इस स्थिति को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की है। कुछ का मानना है कि यह कदम पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचा सकता है।
क्या भारत पानी रोक सकता है?
तकनीकी रूप से, भारत के पास पश्चिमी नदियों का पानी पूरी तरह रोकने की क्षमता सीमित है। इन नदियों का प्रवाह भारत से होकर पाकिस्तान जाता है, लेकिन भारत के पास इतना बड़ा बुनियादी ढांचा नहीं है कि वह पूरे पानी को स्टोर या डायवर्ट कर सके। फिर भी, बगलिहार और किशनगंगा जैसे बांधों के जरिए भारत ने पहले भी पानी के प्रवाह को नियंत्रित किया है, जिसका असर पाकिस्तान पर पड़ा है।
भारत ने भविष्य में बड़े बांधों और जल परियोजनाओं के निर्माण की योजना बनाई है, जिससे वह पानी के प्रवाह को और नियंत्रित कर सकता है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय कानून और विश्व बैंक की मध्यस्थता के कारण पूरी तरह पानी रोकना जटिल हो सकता है।
सीजफायर और समझौते का भविष्य
भारत ने स्पष्ट किया है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठाता, तब तक सिंधु जल समझौता निलंबित रहेगा। यह रुख भारत की सख्त कूटनीतिक नीति को दर्शाता है। पाकिस्तान ने इस निलंबन को “युद्ध की कार्रवाई” करार दिया है और विश्व बैंक व संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर शिकायत की धमकी दी है। हालांकि, विश्व बैंक ने तटस्थ रुख अपनाया है, जिसे भारत के पक्ष में देखा जा रहा है।
भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रभाव
सीजफायर तनाव कम करने का एक कदम है, लेकिन यह दीर्घकालिक सुधार की गारंटी नहीं देता। कश्मीर, आतंकवाद और जल संसाधनों जैसे मुद्दों पर दोनों देशों के बीच गहरे मतभेद हैं। भारत का कहना है कि आतंकवाद और शांति साथ-साथ नहीं चल सकते। विशेषज्ञों का मानना है कि विश्वास-निर्माण के बिना संबंधों में सुधार मुश्किल है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस मामले में तटस्थ रुख अपनाया है। विश्व बैंक ने समझौते के निलंबन पर कोई टिप्पणी नहीं की, जबकि अमेरिका जैसे देशों ने दोनों पक्षों को आपसी बातचीत से समाधान निकालने की सलाह दी है।
भारत के लिए लाभ
सिंधु जल समझौते के निलंबन से भारत को कई रणनीतिक लाभ हो सकते हैं। यह भारत को जल संसाधनों का बेहतर उपयोग करने, कूटनीतिक दबाव बनाने और आत्मनिर्भर जल नीति अपनाने का अवसर देता है। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय आलोचना का जोखिम भी है।
सीजफायर और सिंधु जल समझौते का निलंबन भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह भारत की सख्त नीति और आतंकवाद के प्रति उसकी जीरो टॉलरेंस नीति को दर्शाता है। हालांकि, स्थायी शांति के लिए दोनों देशों को विश्वास-निर्माण और बातचीत की दिशा में काम करना होगा।