
हाल के दिनों में मध्य पूर्व में तनाव का माहौल और गहरा गया है, खासकर ईरान और इज़रायल के बीच। इस तनाव ने अब एक नया रूप ले लिया है – साइबर युद्ध का। हाल ही में ईरान के सबसे बड़े सरकारी बैंकों में से एक, बैंक सेपाह और बैंक पासारगाद, पर एक बड़े पैमाने पर साइबर हमले ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। इस हमले ने न केवल ईरान की वित्तीय प्रणाली को हिलाकर रख दिया, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर साइबर सुरक्षा के मुद्दों को भी उजागर किया है। इस हमले की जिम्मेदारी एक हैकर समूह गोंजेश्के दारांदे (जिसका अर्थ है “शिकारी गौरैया” या Predatory Sparrow) ने ली है, जिसे इज़रायल से जोड़ा जा रहा है। आइए, इस घटना के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से नजर डालें।
साइबर हमले का स्वरूप और प्रभाव
यह साइबर हमला 2025 में उस समय हुआ जब ईरान और इज़रायल के बीच सैन्य तनाव चरम पर था। ईरान के साइबर सुरक्षा प्राधिकरण ने पुष्टि की कि बैंक सेपाह और बैंक पासारगाद के डिजिटल सिस्टम को निशाना बनाया गया। इस हमले के परिणामस्वरूप देशभर में बैंकों की डिजिटल सेवाएं ठप हो गईं, एटीएम बंद हो गए, और ग्राहक अपने खातों से पैसे निकालने में असमर्थ रहे। इसके अलावा, ईरान के परमाणु संयंत्रों, ईंधन वितरण प्रणाली, नगरपालिका सेवाओं, और परिवहन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर भी इस हमले का असर पड़ा।
ईरान की सुप्रीम काउंसिल ऑफ साइबरस्पेस के पूर्व सचिव फिरोज़ाबादी ने बताया कि इस हमले में महत्वपूर्ण जानकारी चोरी होने की आशंका है। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायपालिका, विधायिका, और कार्यपालिका सहित सरकार के लगभग सभी क्षेत्र इस साइबर हमले से प्रभावित हुए हैं। इस हमले की गंभीरता को देखते हुए ईरानी अधिकारियों ने सभी सरकारी कर्मचारियों और उनके अंगरक्षकों को इंटरनेट से जुड़े उपकरणों के उपयोग पर रोक लगा दी, जिसे इज़रायली मीडिया ने “डिजिटल दहशत” का नाम दिया।
गोंजेश्के दारांदे: हैकर समूह का इतिहास
गोंजेश्के दारांदे कोई नया नाम नहीं है। यह हैकर समूह पहले भी ईरान के खिलाफ कई बड़े साइबर हमलों में शामिल रहा है। 2021 में इस समूह ने ईरान के पेट्रोल पंप नेटवर्क को ठप कर दिया था, जिसके कारण पूरे देश में ईंधन वितरण प्रणाली प्रभावित हुई थी। इसके अलावा, 2022 में ईरान के एक स्टील प्लांट पर साइबर हमला भी इसी समूह से जोड़ा गया था। हालांकि, इज़रायल ने कभी भी औपचारिक रूप से इस समूह से अपने संबंधों की पुष्टि नहीं की, लेकिन इज़रायली मीडिया और विश्लेषकों ने बार-बार इसे इज़रायल समर्थित समूह बताया है।
इस समूह ने अपने हालिया हमले में दावा किया कि उन्होंने बैंक सेपाह के डेटाबेस को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। उनका कहना है कि यह बैंक ईरानी सेना और इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जो ईरान के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रमों का समर्थन करता है। इस दावे ने इस हमले को और भी विवादास्पद बना दिया है, क्योंकि यह न केवल वित्तीय नुकसान बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा बन गया है।
साइबर हमले का समय और संदर्भ
यह साइबर हमला ऐसे समय में हुआ है जब ईरान और इज़रायल के बीच सैन्य तनाव अपने चरम पर है। 1 अक्टूबर 2024 को ईरान ने इज़रायल पर बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया था, जिसके जवाब में इज़रायल ने कड़े जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी थी। इज़रायल के रक्षा मंत्री ने कहा था कि उनका जवाब “घातक और आश्चर्यजनक” होगा। इसके बाद इज़रायली सेना ने ईरान के कई सैन्य और परमाणु ठिकानों पर हमले किए, जिसमें एक गुप्त सैन्य मुख्यालय को नष्ट करने का दावा भी शामिल है। इस साइबर हमले को उसी जवाबी कार्रवाई का हिस्सा माना जा रहा है।
इसके अलावा, यह हमला उस समय हुआ जब गाजा में युद्धविराम वार्ता संकट में थी। इज़रायली विश्लेषक डॉ. एली डेविड ने दावा किया कि इस हमले ने ईरान की वित्तीय प्रणाली को पूरी तरह से पंगु बना दिया है। यह हमला न केवल तकनीकी रूप से जटिल था, बल्कि यह रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इसने ईरान की अर्थव्यवस्था और रक्षा प्रणाली को सीधे निशाना बनाया।
ईरान की प्रतिक्रिया और साइबर सुरक्षा के सवाल
ईरान ने इस हमले के बाद तत्काल कदम उठाए। सरकार ने अपने साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल को और सख्त कर दिया और सभी सरकारी कर्मचारियों को इंटरनेट से जुड़े उपकरणों का उपयोग न करने की सलाह दी। साथ ही, ईरानी अधिकारियों ने दावा किया कि लोगों के डेटा की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं हुआ है और प्रभावित सिस्टम को जल्द ही बहाल कर लिया जाएगा। हालांकि, इस हमले ने ईरान की साइबर सुरक्षा प्रणाली की कमजोरियों को उजागर कर दिया है।
ईरान के साइबर सुरक्षा प्राधिकरण ने इस हमले को “डिजिटल आतंकवाद” का एक रूप बताया और इसे इज़रायल के साथ जोड़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह हमला ईरान की साइबर रक्षा क्षमताओं को और मजबूत करने की आवश्यकता को दर्शाता है। इस घटना ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या ईरान अपनी महत्वपूर्ण बुनियादी संरचनाओं को साइबर हमलों से बचाने में सक्षम है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में साइबर युद्ध
यह साइबर हमला केवल ईरान और इज़रायल के बीच का मामला नहीं है, बल्कि यह वैश्विक साइबर युद्ध के बढ़ते खतरे को दर्शाता है। आज के डिजिटल युग में, साइबर हमले पारंपरिक युद्धों की तरह ही घातक हो सकते हैं। बैंकों, परमाणु संयंत्रों, और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों को निशाना बनाकर देशों की अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर किया जा सकता है।
हाल के वर्षों में, साइबर हमलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, 2025 में ही भारत में पाकिस्तानी हैकर्स द्वारा किए गए साइबर हमलों की संख्या में उछाल देखा गया, जिसमें ट्रांसपेरेंट ट्राइब और APT 36 जैसे समूह शामिल थे। इन हमलों में फर्जी सरकारी दस्तावेजों और फिशिंग लिंक्स का उपयोग करके भारतीय उपयोगकर्ताओं को निशाना बनाया गया। यह दर्शाता है कि साइबर युद्ध अब केवल देशों के बीच ही नहीं, बल्कि विभिन्न क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के बीच भी एक प्रमुख रणनीति बन गया है।
भविष्य की चुनौतियां और सावधानियां
इस साइबर हमले ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं। पहला, क्या देश अपनी महत्वपूर्ण डिजिटल संपत्तियों को सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार हैं? दूसरा, क्या साइबर युद्ध को रोकने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय नियम या संधि बनाई जा सकती है? तीसरा, क्या निजी क्षेत्र और सरकारें मिलकर साइबर सुरक्षा को और मजबूत कर सकती हैं?
ईरान जैसे देशों को अब अपनी साइबर सुरक्षा रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। मजबूत फायरवॉल, नियमित साइबर सुरक्षा ऑडिट, और कर्मचारियों के लिए डिजिटल स्वच्छता (साइबर हाइजीन) प्रशिक्षण जैसे कदम इस दिशा में महत्वपूर्ण हो सकते हैं। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साइबर युद्ध के खतरों को गंभीरता से लेना होगा और इसके खिलाफ एकजुट होकर काम करना होगा।
ईरान के बैंकों पर हुआ यह साइबर हमला न केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष का हिस्सा है, बल्कि यह डिजिटल युग में युद्ध की बदलती प्रकृति को भी दर्शाता है। गोंजेश्के दारांदे जैसे समूहों की सक्रियता और इज़रायल-ईरान तनाव ने साइबर युद्ध को एक नया आयाम दिया है। यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि साइबर सुरक्षा अब केवल तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक सुरक्षा का एक अभिन्न अंग है। भविष्य में, देशों को अपनी साइबर रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने और इस तरह के हमलों से निपटने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता होगी।