
भारत ने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर अपनी नीति को एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है, जिसमें उसने जोर देकर कहा है कि यह भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मामला है, जिसमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए कोई स्थान नहीं है। यह बयान हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की मध्यस्थता की पेशकश के जवाब में आया है। इस लेख में हम भारत की कश्मीर नीति, इसके ऐतिहासिक और वर्तमान संदर्भ, हाल के घटनाक्रम, और भू-राजनीतिक परिदृश्य का गहन विश्लेषण करेंगे।
भारत की स्पष्ट नीति: द्विपक्षीय समाधान
13 मई 2025 को, भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जयसवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जम्मू-कश्मीर पर भारत के रुख को दोहराया। उन्होंने कहा, “जम्मू-कश्मीर से संबंधित सभी मुद्दे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय रूप से हल किए जाएंगे। हमारी नीति में कोई बदलाव नहीं है।” जयसवाल ने यह भी स्पष्ट किया कि एकमात्र अनसुलझा मुद्दा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को भारत में वापस लाना और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करना है।
भारत ने हमेशा यह रुख अपनाया है कि जम्मू-कश्मीर उसका अभिन्न अंग है। विदेश मंत्रालय ने साफ शब्दों में कहा कि इस मुद्दे पर किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जाएगा। यह बयान उस समय आया जब एक दिन पहले, 12 मई 2025 को, डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश की थी। ट्रम्प ने इसे एक जटिल और “हजारों साल पुराना” विवाद करार दिया, जिसे वह भारत और पाकिस्तान के सहयोग से सुलझाने के लिए उत्सुक हैं।
ट्रम्प की पेशकश और भारत की प्रतिक्रिया
ट्रम्प की मध्यस्थता की पेशकश ने भारत में व्यापक चर्चा को जन्म दिया। भारत ने तुरंत इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसमें किसी तीसरे पक्ष की आवश्यकता नहीं है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने 12 मई 2025 को स्पष्ट किया कि हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्षविराम की सहमति दोनों देशों के सैन्य संचालन महानिदेशकों (DGMO) की सीधी बातचीत का परिणाम थी। इसमें किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी।
ट्रम्प का यह बयान उनके पहले कार्यकाल (2017-2021) में की गई एक समान पेशकश की याद दिलाता है। जुलाई 2019 में, तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मुलाकात में ट्रम्प ने कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की बात कही थी, जिसे भारत ने तत्काल खारिज कर दिया था। इस बार भी भारत का रुख अपरिवर्तित रहा, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत अपनी संप्रभुता और कश्मीर नीति पर कोई समझौता नहीं करेगा।
हालिया तनाव और संघर्षविराम
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव की शुरुआत 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक आतंकी हमले से हुई। इस हमले में 26 नागरिकों की जान गई, और भारत ने इसके लिए पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों को जिम्मेदार ठहराया। जवाब में, भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान और PoK में 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए।
पाकिस्तान ने इस कार्रवाई का जवाब देने की कोशिश की और भारत के 15 शहरों पर ड्रोन हमले का प्रयास किया, लेकिन भारतीय सेना ने इन हमलों को नाकाम कर दिया। इस तनाव के बीच, 10 मई 2025 को दोनों देशों के बीच एक संघर्षविराम पर सहमति बनी। भारत ने इसे पाकिस्तान के DGMO की पहल पर हुई द्विपक्षीय बातचीत का परिणाम बताया।
भारत की कश्मीर नीति: ऐतिहासिक आधार
भारत की कश्मीर नीति का आधार 1972 का शिमला समझौता है, जिसमें भारत और पाकिस्तान ने सहमति जताई थी कि सभी विवादों को द्विपक्षीय रूप से हल किया जाएगा। इस समझौते ने कश्मीर को एक द्विपक्षीय मुद्दा घोषित किया और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्पष्ट रूप से अस्वीकार किया।
5 अगस्त 2019 को, भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाकर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित कर दिया। इस कदम ने कश्मीर को भारत के संविधान के तहत पूरी तरह से एकीकृत कर दिया। भारत ने स्पष्ट किया कि अब कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और इस पर कोई विवाद नहीं है। एकमात्र लंबित मुद्दा PoK की वापसी और पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन बंद करना है।
पाकिस्तान की रणनीति और अंतरराष्ट्रीय मंच
पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की बार-बार कोशिश की है। उसने ट्रम्प की मध्यस्थता की पेशकश का स्वागत किया और इसे कश्मीर विवाद के समाधान के लिए एक अवसर के रूप में देखा। इस्लामाबाद का दावा है कि कश्मीर मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के आधार पर होना चाहिए।
हालांकि, भारत का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के 1948-49 के प्रस्ताव अब प्रासंगिक नहीं हैं, क्योंकि शिमला समझौता उन्हें अप्रासंगिक बना चुका है। भारत का मानना है कि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर अपनी आतंकवाद समर्थक नीतियों से ध्यान हटाने की कोशिश करता है।
वैश्विक परिदृश्य और भू-राजनीति
कश्मीर मुद्दा न केवल भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मामला है, बल्कि यह वैश्विक भू-राजनीति में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अमेरिका, चीन और अन्य वैश्विक शक्तियों के अपने हित इस क्षेत्र में हैं। अमेरिका ने कई बार भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने की कोशिश की है। हाल ही में, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो और उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस ने दोनों देशों के नेताओं के साथ बातचीत की, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि वह किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करेगा।
चीन, जो पाकिस्तान का करीबी सहयोगी है, ने भी कश्मीर मुद्दे पर समय-समय पर बयान दिए हैं। हालांकि, भारत ने हर बार यह स्पष्ट किया है कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और इसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है।
भारत की कश्मीर नीति दृढ़ और स्पष्ट है: जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और इससे संबंधित सभी मुद्दे पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल किए जाएंगे। ट्रम्प की मध्यस्थता की पेशकश और पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रियता के बावजूद, भारत ने अपनी संप्रभुता और नीति पर कोई समझौता नहीं किया है। हाल के घटनाक्रम, जैसे पहलगाम हमला और ऑपरेशन सिंदूर, भारत की आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति को दर्शाते हैं।
भविष्य में, भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और स्थिरता के लिए आतंकवाद को समाप्त करना और PoK के मुद्दे को हल करना महत्वपूर्ण होगा। भारत का यह रुख न केवल उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को भी और सशक्त बनाता है।