
कश्मीर विवाद की जड़ें 1947 में भारत के विभाजन में निहित हैं। जब ब्रिटिश शासन समाप्त हुआ, तब रियासतों को यह विकल्प दिया गया कि वे भारत या पाकिस्तान में शामिल हों या स्वतंत्र रहें। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने शुरू में स्वतंत्रता का रास्ता चुना। लेकिन अक्टूबर 1947 में, पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। इस संकट के बीच, महाराजा ने भारत के साथ विलय पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन) पर हस्ताक्षर किए और भारत से सैन्य सहायता मांगी। इसके परिणामस्वरूप, पहला भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हुआ।
1948 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्धविराम हुआ, जिसके बाद नियंत्रण रेखा (एलओसी) स्थापित की गई। इस रेखा ने जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया: एक हिस्सा भारत के नियंत्रण में रहा, जिसे अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में जाना जाता है, और दूसरा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया, जिसे भारत “पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर” (पीओके) कहता है। पाकिस्तान इसे “आज़ाद जम्मू और कश्मीर” (एजेके) और गिलगित-बाल्टिस्तान के रूप में प्रस्तुत करता है।
पीओके का क्षेत्रफल लगभग 78,000 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान और तथाकथित “आज़ाद कश्मीर” शामिल हैं। यह क्षेत्र सामरिक और भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत, पाकिस्तान, और चीन की सीमाओं को जोड़ता है। इसके अलावा, सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों का उद्गम स्थल होने के कारण यह जल संसाधनों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
भारत का दृष्टिकोण और अनुच्छेद 370 का निरसन
भारत ने हमेशा से जम्मू-कश्मीर को, जिसमें पीओके भी शामिल है, अपना अभिन्न अंग माना है। 1947 के विलय पत्र को भारत अपने दावे का आधार मानता है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान ने पीओके पर अवैध कब्जा किया है, और इसे भारत को वापस करना होगा। 5 अगस्त 2019 को, भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा समाप्त कर दिया। इस कदम के साथ, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किया गया। इस फैसले ने भारत की नीति को और स्पष्ट किया कि पीओके सहित पूरा जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया बयान इस नीति का एक मजबूत प्रतिबिंब है। यह बयान भारत की संप्रभुता और दृढ़ता को दर्शाता है, साथ ही यह संदेश देता है कि भारत अब कश्मीर मुद्दे पर किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है। भारत का मानना है कि पाकिस्तान के साथ कोई भी बातचीत पीओके के मुद्दे पर केंद्रित होनी चाहिए।
पाकिस्तान का रुख और क्षेत्रीय जटिलताएं
पाकिस्तान का दृष्टिकोण भारत से पूरी तरह उलट है। वह पीओके को “आज़ाद जम्मू और कश्मीर” के रूप में प्रस्तुत करता है और दावा करता है कि यह क्षेत्र स्वायत्त है। लेकिन वास्तव में, पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का पूर्ण प्रशासनिक और सैन्य नियंत्रण है। वहां के निवासियों को पूर्ण नागरिक अधिकारों से वंचित रखा गया है।
पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र के 1948 के प्रस्तावों के आधार पर हल करने की मांग करता है, जो जनमत संग्रह की बात करते हैं। लेकिन भारत इन प्रस्तावों को अब अप्रासंगिक मानता है, क्योंकि पाकिस्तान ने इनकी शर्तों, जैसे पीओके से अपनी सेना हटाने, का पालन नहीं किया।
पाकिस्तान ने पीओके में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। विशेष रूप से, चीन के साथ मिलकर उसने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) जैसी परियोजनाएं शुरू की हैं। भारत इन परियोजनाओं को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है और इनका कड़ा विरोध करता है।
भू-राजनीतिक महत्व और चुनौतियां
प्रधानमंत्री मोदी का बयान भू-राजनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह भारत की आक्रामक कूटनीति को रेखांकित करता है, जो यह स्पष्ट करता है कि पाकिस्तान के साथ कोई भी बातचीत भारत की शर्तों पर होगी। यह बयान न केवल पाकिस्तान पर दबाव डालता है, बल्कि चीन को भी एक कड़ा संदेश देता है, जो पीओके में अपनी आर्थिक और सामरिक उपस्थिति बढ़ा रहा है।
हालांकि, इस रुख के साथ कई चुनौतियां भी हैं। पहली चुनौती है पाकिस्तान का अड़ियल रवैया। कश्मीर मुद्दा पाकिस्तान की विदेश नीति का केंद्र रहा है, और वह पीओके पर किसी भी तरह की बातचीत के लिए तैयार नहीं दिखता। दूसरी चुनौती अंतरराष्ट्रीय समुदाय का रवैया है। हालांकि कई देश भारत के दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं, लेकिन चीन और कुछ अन्य देश पाकिस्तान के पक्ष में हैं। भारत को कूटनीतिक रूप से इस मुद्दे को उठाना होगा ताकि वैश्विक मंच पर उसका पक्ष मजबूत हो।
अवसर और भविष्य की राह
पीओके को बातचीत का आधार बनाना भारत के लिए कई अवसर भी लाता है। यह भारत को अपनी संप्रभुता और दृढ़ता को विश्व मंच पर प्रदर्शित करने का मौका देता है। साथ ही, यह पाकिस्तान को आतंकवाद और अस्थिरता फैलाने की नीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर सकता है। इसके अलावा, पीओके के निवासियों, जो लंबे समय से पाकिस्तान के शासन में अपने अधिकारों से वंचित हैं, के लिए यह एक नई उम्मीद की किरण हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान भारत की कश्मीर नीति में एक नए युग की शुरुआत करता है। यह न केवल भारत की संप्रभुता को मजबूत करता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और भू-राजनीतिक संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण है। आने वाले वर्षों में, भारत को इस मुद्दे को कूटनीतिक और सामरिक रूप से संभालना होगा। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझाना होगा कि पीओके का मुद्दा केवल एक द्विपक्षीय विवाद नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता से जुड़ा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान “पाकिस्तान के साथ बातचीत केवल पीओके पर होगी” भारत की कश्मीर नीति में एक ऐतिहासिक मोड़ है। यह बयान भारत की दृढ़ता, संप्रभुता, और क्षेत्रीय स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालांकि, इस रुख के साथ कई चुनौतियां हैं, लेकिन यह भारत के लिए अपनी स्थिति को और मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है। भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत इस नीति को कैसे लागू करता है और क्या यह पाकिस्तान के साथ सार्थक बातचीत का आधार बन पाता है। एक बात स्पष्ट है: पीओके का मुद्दा भारत-पाकिस्तान संबंधों के भविष्य को आकार देगा।