
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध 1947 में दोनों देशों के आजाद होने के बाद से ही उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। कश्मीर का मुद्दा इनके बीच सबसे बड़ा विवाद रहा है, जो समय-समय पर सैन्य संघर्ष और तनाव का कारण बनता रहा है। इसके अलावा, आतंकवादी गतिविधियों और नियंत्रण रेखा (LoC) पर होने वाली गोलीबारी ने दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को और बढ़ाया है। 2025 में हाल के घटनाक्रमों ने एक बार फिर इस क्षेत्रीय तनाव को वैश्विक चर्चा का विषय बना दिया। इस लेख में हम इन तनावों, हाल की सैन्य कार्रवाइयों, और शांति की दिशा में उठाए गए कदमों का विश्लेषण करेंगे।
2025 का तनाव और ऑपरेशन सिंदूर
वर्ष 2025 में भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक बार फिर तनाव चरम पर पहुंच गया। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक आतंकी हमले ने स्थिति को और गंभीर कर दिया। इस हमले में 26 पर्यटकों की जान चली गई, जिसने भारत को कड़ा जवाब देने के लिए प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप, भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया, जिसके तहत पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को गंभीर नुकसान पहुंचाया। भारतीय सेना ने 7 से 10 मई के बीच नियंत्रण रेखा पर तीव्र सैन्य कार्रवाइयां कीं, जिसमें 11 पाकिस्तानी एयरबेस नष्ट हुए और लगभग 40 सैनिक मारे गए। इस कार्रवाई ने पाकिस्तान को युद्धविराम की मांग करने के लिए मजबूर किया।
डीजीएमओ की भूमिका और हॉटलाइन संवाद
भारत और पाकिस्तान की सेनाओं में डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) का पद अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई और पाकिस्तान में मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्लाह चौधरी इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं। DGMO न केवल सैन्य रणनीतियों को तैयार करते हैं, बल्कि सीमा पर तनाव को कम करने के लिए अपने समकक्षों के साथ संवाद भी करते हैं। दोनों देशों के बीच 1971 के युद्ध के बाद स्थापित हॉटलाइन इस संवाद का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह हॉटलाइन नई दिल्ली और रावलपिंडी को जोड़ती है और संकट के समय त्वरित संवाद स्थापित करने में मदद करती है।
10 मई 2025 को दोपहर 3:35 बजे पाकिस्तान के DGMO ने भारतीय DGMO से संपर्क किया और युद्धविराम की पेशकश की। इस बातचीत में दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि वे उसी दिन शाम 5:00 बजे से सभी सैन्य कार्रवाइयां और गोलीबारी बंद कर देंगे। भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि यह सहमति दोनों देशों के बीच सीधे तौर पर हुई और इसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं थी।
युद्धविराम का उल्लंघन और भारत का रुख
10 मई की सहमति के कुछ ही घंटों बाद, नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी और ड्रोन गतिविधियों की खबरें सामने आईं। भारतीय सेना ने इसका तत्काल जवाब दिया, जिसे “उचित और पर्याप्त” कार्रवाई बताया गया। इस उल्लंघन ने पाकिस्तान की मंशा पर सवाल उठाए। भारत ने स्पष्ट किया कि वह आतंकवाद के खिलाफ अपने कड़े रुख पर अडिग रहेगा। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा, “आतंकवाद और शांति वार्ता एक साथ नहीं चल सकते।” भारत ने यह भी चेतावनी दी कि भविष्य में किसी भी आतंकी गतिविधि को युद्ध का कार्य माना जाएगा और उसका जवाब कई गुना कठोर होगा।
12 मई की प्रस्तावित वार्ता
10 मई की सहमति के बाद, दोनों देशों के DGMO के बीच 12 मई 2025 को दोपहर 12:00 बजे एक और वार्ता प्रस्तावित थी। इस वार्ता का उद्देश्य युद्धविराम को और मजबूत करना और भविष्य में उल्लंघनों को रोकने के लिए उपायों पर चर्चा करना था। हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, यह वार्ता शाम तक के लिए टाल दी गई। इस टालमटोल ने दोनों देशों के बीच अविश्वास को और उजागर किया। भारत ने स्पष्ट किया कि वह केवल DGMO स्तर की सैन्य वार्ता के लिए तैयार है और राजनीतिक या कूटनीतिक वार्ता की संभावना अभी नहीं है। यह रुख भारत की आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति को दर्शाता है।
अमेरिका की भूमिका पर विवाद
युद्धविराम की घोषणा के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि यह सहमति उनकी मध्यस्थता के कारण संभव हुई। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा कि अमेरिका की मध्यस्थता में पूरी रात चली बातचीत के बाद यह समझौता हुआ। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि यह सहमति भारत और पाकिस्तान के बीच सीधे तौर पर हुई। भारत ने कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को भी सिरे से खारिज कर दिया, जिससे उसकी संप्रभुता और स्वतंत्र विदेश नीति और मजबूत हुई।
सीजफायर का इतिहास और चुनौतियां
भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का इतिहास उल्लंघनों से भरा रहा है। 2003 में दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन पाकिस्तान ने बार-बार इसका उल्लंघन किया। 2020 में पाकिस्तान ने 5,133 बार सीजफायर का उल्लंघन किया, जो पिछले 17 वर्षों में सबसे अधिक था। 2021 में दोनों देशों के DGMO ने संयुक्त बयान जारी कर सीजफायर का पालन करने की प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन 2022 और 2024 में भी उल्लंघन देखे गए। 2025 में अप्रैल के बाद से तनाव फिर से बढ़ा, जिसके परिणामस्वरूप ऑपरेशन सिंदूर शुरू हुआ।
भविष्य की संभावनाएं
यह युद्धविराम समझौता दोनों देशों के लिए एक अवसर है कि वे तनाव को कम करें और क्षेत्रीय स्थिरता की दिशा में काम करें। हालांकि, पाकिस्तान का आतंकवाद को समर्थन देने का इतिहास और बार-बार सीजफायर उल्लंघन विश्वास बहाली में सबसे बड़ी बाधा हैं। भारत ने स्पष्ट किया है कि वह आतंकवाद के खिलाफ अपनी कार्रवाइयों को जारी रखेगा और किसी भी उकसावे का कड़ा जवाब देगा। 12 मई की वार्ता, भले ही टल गई हो, भविष्य में संवाद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहेगी। इस वार्ता में युद्धविराम की शर्तों को और स्पष्ट करने और उल्लंघनों को रोकने के लिए तंत्र स्थापित करने पर चर्चा हो सकती है।
भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई 2025 को हुई DGMO स्तर की बातचीत और इसके परिणामस्वरूप बनी युद्धविराम सहमति एक सकारात्मक कदम है। यह दोनों देशों को शांति और स्थिरता की दिशा में काम करने का अवसर देता है। हालांकि, इस सहमति का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों पक्ष इसे कितनी गंभीरता से लागू करते हैं। भारत का आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख और पाकिस्तान की विश्वसनीयता इस प्रक्रिया की सफलता के लिए महत्वपूर्ण होगी। DGMO की भूमिका न केवल इस सहमति को लागू करने में, बल्कि भविष्य में तनाव को कम करने में भी महत्वपूर्ण रहेगी। दोनों देशों को विश्वास बहाली और शांति की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि इस क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित हो सके।