
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और पाकिस्तान का विभाजन 1947 में हुआ, जिसके बाद से जम्मू-कश्मीर दोनों देशों के बीच तनाव का प्रमुख कारण रहा है। इस दौरान, अमेरिका ने दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को रणनीतिक रूप से संतुलित करने का प्रयास किया है। शीत युद्ध के दौर में, अमेरिका ने पाकिस्तान को सोवियत संघ के खिलाफ अपने रणनीतिक हितों के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी माना। इस अवधि में, पाकिस्तान को सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की गई, जिसने भारत में चिंता पैदा की।
1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया और बंगाल की खाड़ी में अपने सातवें नौसैनिक बेड़े को तैनात किया, जिसे भारत ने एक प्रत्यक्ष धमकी के रूप में देखा। हालांकि, भारत ने इस युद्ध में जीत हासिल की और बांग्लादेश का निर्माण हुआ। 1990 के दशक में, भारत की आर्थिक उदारीकरण नीतियों और उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में उसकी स्थिति को देखते हुए, अमेरिका ने भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना शुरू किया।
21वीं सदी में, अमेरिका ने भारत को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखा, विशेष रूप से क्वाड (Quadrilateral Security Dialogue) जैसे गठबंधनों के माध्यम से, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। यह गठबंधन मुख्य रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए बनाया गया था। हालांकि, अमेरिका ने अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका के कारण उसके साथ भी अपने संबंध बनाए रखे।
2025 में तनाव का उभार
वर्ष 2025 में, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए एक आतंकी हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। भारत ने इस हमले को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों से जोड़ा और इसके जवाब में “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया। इस ऑपरेशन के तहत भारत ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर लक्षित सैन्य कार्रवाई की, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव और बढ़ गया।
इस दौरान, अमेरिका ने तनाव को कम करने की अपील की और कई बयान जारी किए। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता ने कश्मीर में हुई हिंसा को “अवैध और अस्वीकार्य” बताया और कहा कि अमेरिका दोनों देशों के नेताओं के साथ संपर्क में है। 10 मई 2025 को, अमेरिकी राष्ट्रपति ने दावा किया कि उनकी मध्यस्थता के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम हुआ। इस बयान ने भारत में तीव्र बहस को जन्म दिया, क्योंकि भारत ने हमेशा कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय माना है और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं किया।
अमेरिका की भूमिका: प्रमुख आयाम
मध्यस्थता के प्रयास
अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने के लिए मध्यस्थता की भूमिका निभाने का प्रयास किया। अमेरिकी राष्ट्रपति ने दावा किया कि उनकी सरकार ने दोनों देशों के नेताओं के साथ बातचीत कर युद्धविराम को संभव बनाया। हालांकि, भारत ने इस दावे को स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए कहा कि युद्धविराम दोनों देशों की सेनाओं के बीच हॉटलाइन संपर्क और द्विपक्षीय बातचीत का परिणाम था। भारत का मानना है कि अमेरिका का यह दावा कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की कोशिश है, जो भारत की नीति के खिलाफ है।
आतंकवाद पर नीति
अमेरिका ने पाकिस्तान पर आतंकवादी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगाया, जो भारत के रुख के अनुरूप था। अमेरिकी विदेश विभाग ने कहा कि वह लंबे समय से पाकिस्तान की आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली नीतियों के खिलाफ है। यह बयान भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन का संकेत था। हालांकि, कई विश्लेषकों का मानना है कि यह समर्थन केवल सतही था, क्योंकि अमेरिका ने पाकिस्तान के खिलाफ कोई ठोस कदम, जैसे कि प्रतिबंध या सैन्य सहायता में कटौती, नहीं उठाया।
रणनीतिक संतुलन
अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौलने की कोशिश की, जो भारत के लिए असहज रहा। भारत, जो क्वाड जैसे गठबंधनों में अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, ने इस रुख को अपनी स्थिति के कमजोर होने के रूप में देखा। विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका ने यह संतुलन बनाए रखने की कोशिश की ताकि वह पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को नुकसान न पहुंचाए, जो अफगानिस्तान और अन्य क्षेत्रीय मुद्दों में अभी भी महत्वपूर्ण है।
आर्थिक प्रलोभन
अमेरिका ने दोनों देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने की बात कही। राष्ट्रपति ने अपने बयान में कहा कि वह भारत और पाकिस्तान के साथ व्यापार को “महत्वपूर्ण रूप से” बढ़ाएंगे। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह एक रणनीतिक कदम था, जिसका उद्देश्य आर्थिक प्रलोभन देकर तनाव को कम करना था। हालांकि, भारत ने इस प्रस्ताव को सतर्कता के साथ लिया, क्योंकि वह नहीं चाहता कि ऐसे प्रस्तावों के जरिए उसके द्विपक्षीय रुख पर दबाव डाला जाए।
अमेरिका की भूमिका की आलोचना
मध्यस्थता का दावा और भारत का अस्वीकरण
अमेरिकी राष्ट्रपति के युद्धविराम में मध्यस्थता के दावे ने भारत में तीखी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं। भारत ने स्पष्ट किया कि युद्धविराम द्विपक्षीय बातचीत का परिणाम था और इसमें किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी। यह दावा भारत के लिए असहज था, क्योंकि यह कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की कोशिश के रूप में देखा गया। भारत ने हमेशा इस मुद्दे को द्विपक्षीय माना है और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार किया है।
पाकिस्तान के प्रति नरम रुख
कई भारतीय विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका ने पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाया। भले ही अमेरिका ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाया, लेकिन उसने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसके बजाय, अमेरिका ने पाकिस्तान को युद्धविराम के लिए राजी करने में मदद की, जिसे कुछ लोग पाकिस्तान को भारत की सैन्य कार्रवाई से बचाने की कोशिश के रूप में देखते हैं।
रणनीतिक साझेदारी में असंतुलन
भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी भारत को क्षेत्रीय और वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण भूमिका देती है। हालांकि, अमेरिका का भारत और पाकिस्तान को समान रूप से देखने का रुख भारत के लिए निराशाजनक था। भारत का मानना है कि उसकी रणनीतिक स्थिति और क्षेत्रीय प्रभाव को अमेरिका द्वारा पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया।
विश्वसनीयता पर सवाल
अमेरिकी राष्ट्रपति की व्यक्तिगत शैली और उनकी “क्रेडिट लेने” की प्रवृत्ति ने उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रपति ने युद्धविराम का श्रेय लेने की जल्दबाजी की, जबकि वास्तव में इसका श्रेय भारत और पाकिस्तान की द्विपक्षीय बातचीत को जाता है। उनकी अतिशयोक्तिपूर्ण टिप्पणियों ने उनकी विश्वसनीयता को और कमजोर किया।
भारत में विपक्ष की प्रतिक्रिया
भारत में विपक्षी दलों ने सरकार से सवाल किया कि अमेरिकी दावों को स्पष्ट रूप से खारिज क्यों नहीं किया गया। विपक्ष ने इस मुद्दे पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की ताकि पहलगाम हमले, ऑपरेशन सिंदूर, और युद्धविराम पर चर्चा हो सके। विपक्ष का मानना है कि अमेरिका का बयान भारत की संप्रभुता और स्वतंत्र नीति पर सवाल उठाता है।
भारत-पाकिस्तान संघर्ष में अमेरिका की भूमिका जटिल और बहुआयामी रही है। एक ओर, अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख का समर्थन किया और तनाव कम करने की अपील की। दूसरी ओर, उसकी मध्यस्थता के दावे और भारत-पाकिस्तान को समान रूप से देखने की नीति ने भारत में असंतोष पैदा किया। भारत का मानना है कि यह मुद्दा द्विपक्षीय है और इसमें तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।
अमेरिका की रणनीति में क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक हितों को बढ़ावा देना, और पाकिस्तान के साथ संबंध बनाए रखना शामिल है। हालांकि, इस संतुलन की कोशिश ने भारत में सवाल खड़े किए हैं कि क्या अमेरिका वास्तव में भारत के रणनीतिक हितों को प्राथमिकता देता है। भविष्य में, अमेरिका को इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को अधिक स्पष्ट और पारदर्शी तरीके से परिभाषित करना होगा ताकि वह भारत जैसे महत्वपूर्ण साझेदारों का विश्वास बनाए रख सके।