
प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025, जो अपनी भव्यता और आध्यात्मिक महत्व के लिए विश्वभर में जाना जाता है, इस बार एक दुखद घटना के कारण सुर्खियों में रहा। मौनी अमावस्या के पवित्र स्नान के दौरान मची भगदड़ ने कई परिवारों को गहरे सदमे में डाल दिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस हादसे में जान गंवाने वालों के परिजनों को 25 लाख रुपये के मुआवजे की घोषणा की थी, लेकिन हाल ही में कुछ परिवारों को 5-5 लाख रुपये नगद भुगतान किए गए। इस नगद भुगतान की प्रक्रिया और इसके पीछे की व्यवस्था ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जो अब तक अनुत्तरित हैं। यह लेख उस दुखद घटना, मुआवजे की प्रक्रिया, और इससे जुड़े सवालों पर प्रकाश डालता है।
भगदड़ की त्रासदी: क्या हुआ था?
मह 2025 की ठंडी सुबह थी, जब लाखों श्रद्धालु प्रयागराज के संगम तट पर मौनी अमावस्या के स्नान के लिए एकत्र हुए थे। यह दिन कुंभ मेले का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है, जब संगम में डुबकी लगाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन इस आध्यात्मिक उत्साह के बीच, रात करीब डेढ़ बजे एक घाट पर अचानक भगदड़ मच गई। प्रशासन के अनुसार, इस हादसे में 30 लोगों की जान चली गई, जबकि 60 से अधिक लोग घायल हुए।
इस भगदड़ के कारणों को लेकर कई तरह की बातें सामने आईं। कुछ का कहना था कि अनुमान से अधिक भीड़ के कारण स्थिति अनियंत्रित हो गई, तो कुछ ने प्रशासनिक व्यवस्था में खामियों की ओर इशारा किया। डीआईजी (महाकुंभ मेला क्षेत्र) वैभव कृष्ण ने बताया कि 25 मृतकों की पहचान हो चुकी थी, लेकिन कई परिवार अब भी अपने परिजनों के बारे में सटीक जानकारी के इंतजार में थे।
मुआवजा: 25 लाख से 5 लाख तक का सफर
घटना के तुरंत बाद, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हादसे की न्यायिक जांच के आदेश दिए और मृतकों के परिवारों के लिए 25 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की घोषणा की। इस जांच के लिए जस्टिस हर्ष कुमार, पूर्व डीजीपी वीके गुप्ता, और रिटायर्ड आईएएस डीके सिंह की तीन सदस्यीय समिति गठित की गई।
हालांकि, कुछ महीनों बाद खबर आई कि 26 परिवारों को 5-5 लाख रुपये नगद भुगतान किया गया। यह राशि पहले घोषित 25 लाख रुपये से काफी कम थी, जिसने कई सवालों को जन्म दिया। मुआवजे की यह राशि किस आधार पर दी गई? क्या सभी परिवारों को समान राशि मिली, या कुछ को कम राशि दी गई? नगद भुगतान का तरीका क्यों चुना गया, और इसमें पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित की गई? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो प्रभावित परिवारों और आम जनता के मन में उठ रहे हैं।
नगद भुगतान: सुविधा या संदेह?
नगद भुगतान की प्रक्रिया ने इस मामले को और जटिल बना दिया। कुछ परिवारों ने बताया कि उन्हें मुआवजे की राशि नकद में दी गई, लेकिन इस प्रक्रिया में कई अनियमितताएं थीं। उदाहरण के लिए, कुछ परिवारों को मृत्यु प्रमाणपत्र (डेथ सर्टिफिकेट) के बिना ही राशि दी गई, जो सामान्य प्रक्रिया के विपरीत है।
मृत्यु प्रमाणपत्र एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो मृतक की पहचान और मृत्यु के कारण को प्रमाणित करता है। इसके बिना मुआवजा देना न केवल प्रशासनिक नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह भविष्य में कानूनी जटिलताओं को भी जन्म दे सकता है। कई परिवारों ने यह भी सवाल उठाया कि क्या यह नगद भुगतान हादसे की जवाबदेही को कम करने की कोशिश थी।
परिवारों का दर्द: अनुत्तरित सवाल
इस हादसे ने कई परिवारों को अपूरणीय क्षति पहुंचाई। कुछ परिवार अपने कमाने वाले सदस्य को खो चुके हैं, तो कुछ ने अपने बच्चों या बुजुर्गों को। इन परिवारों के लिए मुआवजा केवल एक आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि उनके दर्द को कम करने का एक प्रयास भी है। लेकिन नगद भुगतान की प्रक्रिया ने उनके दुख को और बढ़ा दिया।
उदाहरण के लिए, एक प्रभावित परिवार ने बताया कि उन्हें 5 लाख रुपये नकद दिए गए, लेकिन उन्हें यह नहीं बताया गया कि यह राशि अंतिम मुआवजा है या आगे और सहायता मिलेगी। एक अन्य परिवार ने शिकायत की कि उन्हें मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़े, लेकिन फिर भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला।
प्रशासन की चुप्पी
इस मामले में प्रशासन की चुप्पी ने स्थिति को और रहस्यमयी बना दिया। मेला अधिकारी विजय किरण आनंद ने इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट जवाब देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे पहले ही अपनी प्रतिक्रिया दे चुके हैं, लेकिन उनके बयान में नगद भुगतान या मृत्यु प्रमाणपत्र से जुड़े सवालों का जवाब नहीं था।
प्रशासन ने यह भी नहीं बताया कि क्या भगदड़ के लिए जिम्मेदार कारकों की जांच पूरी हो चुकी है। क्या यह हादसा भीड़ प्रबंधन की कमी के कारण हुआ, या इसमें अन्य कारक शामिल थे? इन सवालों का जवाब न मिलने से प्रभावित परिवारों में असंतोष बढ़ रहा है।
पहले भी हो चुके हैं ऐसे हादसे
यह पहली बार नहीं है जब कुंभ मेले में भगदड़ की घटना हुई हो। 1954 में हुए कुंभ मेले में एक हाथी के कारण मची भगदड़ में 800 से अधिक लोग मारे गए थे। 2013 में भी रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 36 लोगों की जान चली गई थी। इन घटनाओं के बाद सरकार ने हर बार सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर करने का दावा किया, लेकिन 2025 की घटना ने सवाल उठाया कि क्या वाकई में पर्याप्त सुधार किए गए हैं।
क्या है समाधान?
इस दुखद घटना ने कई सबक दिए हैं। सबसे पहले, कुंभ जैसे विशाल आयोजनों में भीड़ प्रबंधन को और प्रभावी करना होगा। ड्रोन, सीसीटीवी कैमरे, और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके भीड़ की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। साथ ही, आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं को और सुलभ करना होगा, ताकि घायलों को तुरंत उपचार मिल सके।
दूसरा, मुआवजे की प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और डिजिटल करना चाहिए। नगद भुगतान के बजाय, बैंक खातों में सीधे राशि हस्तांतरित की जानी चाहिए, ताकि अनियमितताओं की आशंका कम हो। मृत्यु प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेजों की प्रक्रिया को भी सरल और समयबद्ध करना होगा।
महाकुंभ 2025 की भगदड़ एक ऐसी त्रासदी है, जिसने न केवल कई परिवारों को तोड़ा, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सवाल उठाए। 5 लाख रुपये का नगद मुआवजा एक शुरुआत हो सकती है, लेकिन यह प्रभावित परिवारों के दुख को पूरी तरह कम नहीं कर सकता। जरूरी है कि प्रशासन इस घटना से सबक ले और भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए। साथ ही, मुआवजे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाकर प्रभावित परिवारों का भरोसा जीता जाए। यह न केवल उन परिवारों के लिए न्याय होगा, बल्कि कुंभ जैसे पवित्र आयोजन की गरिमा को भी बनाए रखेगा।