
भारत ने हाल के वर्षों में आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति को न केवल सख्त किया है, बल्कि इसे एक नए और आक्रामक स्तर पर ले जाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में आतंकवाद के प्रति भारत की जीरो टॉलरेंस नीति को रेखांकित करते हुए एक दमदार बयान दिया: “हम हर आतंकी हमले का जवाब अपनी शर्तों पर देंगे। कोई भी आतंकी कहीं भी सुरक्षित नहीं रहेगा।” यह बयान भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति दृढ़ संकल्प और वैश्विक मंच पर बढ़ती ताकत का प्रतीक है। यह लेख इस बयान के संदर्भ, भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति, इसके भू-राजनीतिक प्रभाव, और इससे जुड़े जोखिमों व अवसरों पर प्रकाश डालेगा।
ऐतिहासिक संदर्भ और आतंकवाद का खतरा
भारत दशकों से आतंकवाद की चुनौतियों से जूझ रहा है। 1990 के दशक से लेकर 2001 के संसद हमले, 2008 के मुंबई हमले, और उरी व पुलवामा जैसे आतंकी हमलों तक, देश ने कई बार इस खतरे का सामना किया है। इन हमलों के पीछे अक्सर पड़ोसी देश पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों का हाथ रहा है, जिन्हें वहां की जमीन पर सुरक्षित ठिकाने और समर्थन प्राप्त होता है। भारत ने बार-बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान से आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है, लेकिन इन मांगों का कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
हाल के वर्षों में, जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में कमी देखी गई थी, लेकिन छिटपुट हमलों ने यह स्पष्ट कर दिया कि खतरा अभी भी मौजूद है। पाकिस्तान की आर्थिक अस्थिरता और राजनीतिक उथल-पुथल ने आतंकी संगठनों को और अधिक सक्रिय होने का अवसर प्रदान किया है। ऐसे में, भारत का यह स्पष्ट और कड़ा रुख न केवल समय की मांग है, बल्कि यह एक रणनीतिक कदम भी है, जो वैश्विक समुदाय को भारत की दृढ़ता का संदेश देता है।
भारत की आतंकवाद विरोधी नीति का विकास
2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनने के बाद, भारत ने आतंकवाद के खिलाफ एक सक्रिय और आक्रामक नीति अपनाई। इसका सबसे उल्लेखनीय उदाहरण 2016 में उरी हमले के बाद किया गया सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में पुलवामा हमले के जवाब में बालाकोट एयरस्ट्राइक है। इन कार्रवाइयों ने यह साबित किया कि भारत अब केवल रक्षात्मक रुख नहीं अपनाएगा, बल्कि जरूरत पड़ने पर सीमा पार जाकर आतंकियों को निशाना बनाएगा।
प्रधानमंत्री का हालिया बयान इस नीति को और मजबूती देता है। यह न केवल भारत की सैन्य ताकत और खुफिया क्षमताओं में विश्वास को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ कोई समझौता नहीं करेगा। भारत ने हाल के वर्षों में अपनी रक्षा और खुफिया प्रणाली को आधुनिक बनाया है। ड्रोन तकनीक, सटीक हथियार, और साइबर युद्ध जैसी उन्नत तकनीकों में निवेश के साथ-साथ, स्वदेशी रक्षा उपकरणों और तकनीकों पर भी जोर दिया गया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और अन्य स्वदेशी पहलें भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ा रही हैं।
भू-राजनीतिक प्रभाव और वैश्विक संदेश
प्रधानमंत्री का यह बयान न केवल पाकिस्तान के लिए, बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए भी एक मजबूत संदेश है। यह पाकिस्तान को स्पष्ट चेतावनी देता है कि भारत आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा और इसके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करेगा। पाकिस्तान लंबे समय से आतंकी संगठनों को पनाह देने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना का सामना करता रहा है। भारत का यह रुख पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाता है कि वह अपनी जमीन पर आतंकी गतिविधियों को रोके।
यह बयान भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत को भी दर्शाता है। पिछले एक दशक में, भारत ने क्वाड (QUAD) जैसे गठबंधनों, संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों, और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूत किया है। भारत ने आतंकवाद को वैश्विक खतरे के रूप में उजागर किया है और इसके खिलाफ सहयोग की मांग की है। यह बयान भारत की इस छवि को और सुदृढ़ करता है कि वह एक जिम्मेदार और शक्तिशाली राष्ट्र है, जो अपनी सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाने से नहीं हिचकिचाता।
हालांकि, इस नीति के कुछ जोखिम भी हैं। पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ने से सैन्य टकराव की आशंका बढ़ सकती है। इसके अलावा, कुछ पश्चिमी देश भारत की इस आक्रामक नीति को लेकर सतर्कता बरत सकते हैं। फिर भी, भारत ने स्पष्ट किया है कि उसकी कार्रवाइयां केवल आतंकवाद के खिलाफ हैं, न कि किसी देश की संप्रभुता के खिलाफ। यह रुख भारत को वैश्विक समुदाय में नैतिक और रणनीतिक रूप से मजबूत स्थिति प्रदान करता है।
जनता और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
भारत में इस बयान को व्यापक समर्थन मिला है। आतंकवादी हमलों से लंबे समय से पीड़ित आम जनता ने इसे सरकार की दृढ़ता और साहस का प्रतीक माना है। सोशल मीडिया पर इस बयान की व्यापक चर्चा हुई, जहां लोगों ने इसे भारत की नई और आत्मविश्वास से भरी छवि का प्रतीक बताया। कई नागरिकों ने इसे राष्ट्रीय गौरव और सुरक्षा के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के रूप में देखा।
राजनीतिक दलों ने भी इस बयान का समर्थन किया है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सरकार की दृढ़ता का प्रमाण बताया। विपक्षी दलों ने भी, कुछ हद तक सतर्कता के साथ, इस नीति का समर्थन किया। हालांकि, कुछ नेताओं ने चेतावनी दी कि ऐसी बयानबाजी से क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है, जिसका असर दक्षिण एशिया की स्थिरता पर पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भारत के मित्र देशों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस, और इजरायल, ने भारत की आतंकवाद विरोधी नीति का समर्थन किया है। इन देशों ने आतंकवाद को वैश्विक खतरा माना है और भारत की कार्रवाइयों को जायज ठहराया है। हालांकि, कुछ देशों, जैसे चीन, ने इस मुद्दे पर तटस्थ रुख अपनाया है।
चुनौतियां और भविष्य की दिशा
भारत की इस आक्रामक नीति को लागू करने में कई चुनौतियां हैं। सबसे पहले, भारत को अपनी सैन्य और खुफिया क्षमताओं को और मजबूत करना होगा। इसके लिए आधुनिक तकनीकों, बेहतर समन्वय, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। दूसरा, भारत को अपनी कूटनीति को और प्रभावी बनाना होगा ताकि वह क्षेत्रीय स्थिरता को बनाए रखते हुए अपनी नीति को लागू कर सके।
इसके अलावा, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी कार्रवाइयां अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानदंडों के अनुरूप हों। वैश्विक समुदाय के साथ सहयोग बढ़ाना और आतंकवाद के खिलाफ एकजुट मोर्चा बनाना भारत के लिए महत्वपूर्ण होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया बयान भारत की आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति का एक मजबूत प्रमाण है। यह न केवल पाकिस्तान को एक कड़ा संदेश देता है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को भी सुदृढ़ करता है। यह नीति भारत की जनता को सुरक्षा का भरोसा देती है और आतंकवादियों को यह संदेश देती है कि वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं।
आने वाले समय में, भारत की यह नीति आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक कदम साबित हो सकती है। यह न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करती है, बल्कि भारत को एक सशक्त और आत्मविश्वास से भरे राष्ट्र के रूप में स्थापित करती है। भारत का यह नया युग, जहां सुरक्षा सर्वोपरि है, न केवल देश की जनता के लिए, बल्कि वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है।