
डोनाल्ड ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति वैश्विक व्यापार में हमेशा से चर्चा का विषय रही है। अपने पहले कार्यकाल (2017-2021) के दौरान, उन्होंने भारत की व्यापार नीतियों की बार-बार आलोचना की, विशेष रूप से हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों पर लगाए गए 100% से 200% तक के आयात शुल्क को “अनुचित” करार दिया। 2025 में अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ, ट्रंप ने इस रुख को और सख्त कर लिया। उन्होंने भारत, कनाडा, मैक्सिको और चीन जैसे देशों पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी, इसे “रेसिप्रोकल टैरिफ” (पारस्परिक टैरिफ) का नाम देते हुए कहा कि यदि ये देश अमेरिकी उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाते हैं, तो अमेरिका भी उनके खिलाफ समान टैरिफ लागू करेगा।
ट्रंप का तर्क था कि भारत जैसे देश अमेरिका के साथ व्यापार में असंतुलन पैदा कर रहे हैं। 2024 में भारत का अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) लगभग 30 बिलियन डॉलर था, जिसे ट्रंप ने अपने “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण के लिए खतरा माना। उनकी यह रणनीति अमेरिकी उत्पादों को वैश्विक बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने की थी, लेकिन इसने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता को जन्म दिया, जिसका असर भारत जैसे विकासशील देशों पर पड़ना तय था।
भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया
ट्रंप की धमकियों के जवाब में, भारत ने एक रणनीतिक और संतुलित कदम उठाया। फरवरी 2025 में, भारत ने मोटरसाइकिलों पर आयात शुल्क में कटौती की। 1600 सीसी से अधिक इंजन वाली मोटरसाइकिलों पर टैरिफ को 50% से घटाकर 30% और छोटी मोटरसाइकिलों पर 50% से 40% तक कम किया गया। यह कदम विशेष रूप से हार्ले-डेविडसन जैसे अमेरिकी ब्रांडों के लिए भारतीय बाजार को अधिक सुलभ बनाने के लिए उठाया गया।
यह टैरिफ कटौती भारत के लिए दोहरे उद्देश्य को पूरा करती थी। पहला, यह ट्रंप की आलोचनाओं का जवाब देने और व्यापार युद्ध की संभावना को कम करने का एक कूटनीतिक प्रयास था। दूसरा, यह भारत की उस छवि को मजबूत करता था जो वैश्विक व्यापार में एक जिम्मेदार और सहयोगी भागीदार के रूप में उभर रही है। यह कदम भारत की “आत्मनिर्भर भारत” नीति के अनुरूप भी था, क्योंकि यह घरेलू उद्योगों को नुकसान पहुंचाए बिना विदेशी निवेश को आकर्षित करने की दिशा में एक संतुलित कदम था।
हालांकि, कुछ आलोचकों ने इसे ट्रंप के दबाव में झुकने के रूप में देखा। विपक्षी नेताओं ने दावा किया कि यह भारत की आर्थिक संप्रभुता पर सवाल उठाता है। फिर भी, यह कहना अधिक उचित होगा कि यह कदम दबाव में झुकने के बजाय एक रणनीतिक रियायत था, जिसने ट्रंप की बयानबाजी को शांत करने में मदद की, साथ ही भारत के दीर्घकालिक हितों की रक्षा की।
मोदी की कूटनीतिक कुशलता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह रणनीति केवल टैरिफ कटौती तक सीमित नहीं थी। यह एक व्यापक संदेश था जो भारत की आर्थिक और कूटनीतिक ताकत को दर्शाता था। पहला, भारत ने दिखाया कि वह वैश्विक व्यापार में एक लचीला और जिम्मेदार भागीदार है। टैरिफ कटौती के जरिए, भारत ने व्यापार युद्ध से बचने की इच्छा जताई, लेकिन यह उसकी ताकत का प्रतीक था, न कि कमजोरी का।
दूसरा, भारत ने अपनी आर्थिक संप्रभुता को बनाए रखा। टैरिफ कटौती के बावजूद, भारत ने उन क्षेत्रों में अपनी नीतियों को मजबूत रखा जो घरेलू उद्योगों और उपभोक्ताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, भारत ने अमेरिका से रक्षा उपकरणों की खरीद बढ़ाने पर सहमति जताई, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापार संतुलन को बेहतर करने में मदद मिली।
तीसरा, मोदी की रणनीति ने वैश्विक मंच पर भारत की छवि को और मजबूत किया। ट्रंप ने कई मौकों पर मोदी की प्रशंसा की, उन्हें “महान मित्र” और “स्मार्ट नेता” बताया। यह दर्शाता है कि मोदी ने न केवल ट्रंप की आलोचनाओं का जवाब दिया, बल्कि उनके साथ व्यक्तिगत और कूटनीतिक संबंधों को भी बनाए रखा। यह भारत की “वसुधैव कुटुंबकम” की नीति का एक उदाहरण है, जिसमें वैश्विक सहयोग और आपसी सम्मान पर जोर दिया जाता है।
वैश्विक और द्विपक्षीय प्रभाव
ट्रंप की टैरिफ धमकियों और भारत की प्रतिक्रिया का प्रभाव केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं था। वैश्विक व्यापार में बढ़ती अनिश्चितता के कारण, सोने की कीमतों में गिरावट देखी गई, क्योंकि निवेशक शेयर बाजार और बिटकॉइन जैसे जोखिम भरे निवेशों की ओर आकर्षित हुए। इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर की मजबूती ने भारत जैसे देशों के लिए आयात को और महंगा बना दिया।
भारत के लिए, टैरिफ कटौती ने कुछ सकारात्मक परिणाम दिए। हार्ले-डेविडसन जैसे ब्रांडों के लिए भारतीय बाजार खुलने से विदेशी निवेश और रोजगार सृजन की संभावना बढ़ी। हालांकि, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि यदि ट्रंप अपनी धमकियों को और बढ़ाते हैं, तो भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। दिल्ली स्थित थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक विशेषज्ञ ने कहा, “अगर ट्रंप अपने करीबी सहयोगियों के खिलाफ कदम उठा सकते हैं, तो भारत के खिलाफ कार्रवाई करना उनके लिए आसान होगा।”
द्विपक्षीय संबंधों के दृष्टिकोण से, भारत और अमेरिका के बीच रक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा। फिर भी, अवैध प्रवासियों के निर्वासन जैसे मुद्दों ने दोनों देशों के बीच तनाव को भी उजागर किया।
घरेलू प्रतिक्रियाएं और आलोचनाएं
भारत में, मोदी सरकार के इस कदम की मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस ने सरकार पर ट्रंप के दबाव में झुकने का आरोप लगाया। कांग्रेस नेताओं ने दावा किया कि यह भारत की आर्थिक नीतियों की विफलता का प्रमाण है। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने भी सरकार की आलोचना की, यह तर्क देते हुए कि यह कदम भारत की वैश्विक छवि को कमजोर करता है।
दूसरी ओर, कई विशेषज्ञों और समर्थकों ने मोदी की कूटनीति की सराहना की। उनका मानना था कि टैरिफ कटौती एक रणनीतिक कदम था जो भारत के दीर्घकालिक हितों की रक्षा करता है। यह कदम भारत की वैश्विक व्यापार में सहयोगी भूमिका को दर्शाता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि भारत अपनी आर्थिक संप्रभुता को बनाए रखे।
ट्रंप की टैरिफ धमकियों के जवाब में, नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपनी कूटनीतिक कुशलता का परिचय दिया। टैरिफ कटौती के जरिए, भारत ने न केवल ट्रंप की आलोचनाओं का जवाब दिया, बल्कि वैश्विक व्यापार में अपनी जिम्मेदार और सहयोगी भूमिका को भी रेखांकित किया। यह कदम भारत की आर्थिक संप्रभुता, रणनीतिक स्वायत्तता, और वैश्विक मंच पर बढ़ती ताकत का प्रतीक था।
हालांकि, यह घटनाक्रम यह भी दर्शाता है कि वैश्विक व्यापार और कूटनीति में चुनौतियां लगातार बनी रहेंगी। भारत को भविष्य में भी ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी रणनीतियों को और मजबूत करना होगा। मोदी की इस रणनीति ने न केवल ट्रंप को जवाब दिया, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया कि भारत एक ऐसी शक्ति है जो दबाव में नहीं झुकती, बल्कि अपने हितों की रक्षा के लिए समझदारी और ताकत के साथ आगे बढ़ती है।