
पाकिस्तान का आतंकवाद के साथ रिश्ता दशकों पुराना है। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, और तहरीक-ए-तालिबान जैसे संगठन न केवल पाकिस्तान में सक्रिय हैं, बल्कि इनके तार पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी जुड़े होने के आरोप समय-समय पर सामने आते रहे हैं। 2008 के मुंबई हमले, जिसमें 166 लोग मारे गए थे, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इस हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को पाकिस्तान में खुलेआम घूमने की छूट थी, जो यह दर्शाता है कि वहां आतंकियों को कितना संरक्षण प्राप्त है। हाल ही में एक और घटना ने पाकिस्तान की इस दोहरी नीति को फिर से बेनकाब किया, जब एक तथाकथित “मासूम मौलाना” लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी निकला।
मासूम मौलाना की असलियत
हाल ही में, पाकिस्तानी सेना और मीडिया ने एक व्यक्ति को धार्मिक विद्वान और शांतिप्रिय नागरिक के रूप में पेश करने की कोशिश की। दावा किया गया कि भारतीय सेना ने इस “मासूम मौलाना” को निशाना बनाया, ताकि भारत पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाया जा सके। लेकिन भारतीय खुफिया एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय जांच ने इस झूठ को उजागर कर दिया। यह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि लश्कर-ए-तैयबा का कुख्यात आतंकी हाफिज अब्दुल रऊफ था।
हाफिज अब्दुल रऊफ को 2010 में अमेरिका ने “स्पेशली डेजिग्नेटेड ग्लोबल टेररिस्ट” घोषित किया था। वह लश्कर-ए-तैयबा का एक प्रमुख कमांडर था, जो भारत के खिलाफ आतंकी हमलों की साजिश रचने और आतंकी प्रशिक्षण शिविरों का संचालन करने में सक्रिय था। ऑपरेशन सिंदूर (6-7 मई 2025) के दौरान मारे गए आतंकियों की एक शोक सभा में रऊफ को पाकिस्तानी सेना के साथ देखा गया, जो इस बात का पुख्ता सबूत है कि पाकिस्तान आतंकियों को न केवल पनाह देता है, बल्कि उन्हें बढ़ावा भी देता है।
पाकिस्तानी सेना ने रऊफ को मासूम मौलाना के रूप में पेश करने के लिए फर्जी तस्वीरों और कहानियों का सहारा लिया। लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और तस्वीरों ने इस साजिश को बेनकाब कर दिया। इन तस्वीरों में रऊफ को आतंकियों की कब्र पर मर्सिया पढ़ते और पाकिस्तानी सेना के साथ खड़े देखा गया। इस खुलासे ने पाकिस्तान की विश्वसनीयता को गहरा झटका दिया।
पाकिस्तान की रणनीति: धार्मिक छवि का दुरुपयोग
पाकिस्तान ने बार-बार आतंकियों को धार्मिक या सामाजिक छवि देकर बचाने की कोशिश की है। लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन अपने आतंकियों को मौलाना, शिक्षक, या समाजसेवी के रूप में पेश करते हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह किया जा सके और स्थानीय आबादी में भारत विरोधी भावनाएं भड़काई जा सकें। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में आयोजित एक सभा में बच्चों को हथियार थमाकर और भारत के खिलाफ जहर उगलकर इसी रणनीति को अपनाया गया। इस सभा में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की मौजूदगी ने यह साफ कर दिया कि आतंकवाद और पाकिस्तानी राज्य के बीच गहरी साठगांठ है।
यह रणनीति न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों का भी उल्लंघन है। मासूम बच्चों को आतंकी संगठनों में भर्ती करना और उन्हें हथियार थमाना मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है। फिर भी, पाकिस्तान इन गतिविधियों को धार्मिक या राष्ट्रवादी रंग देकर जायज ठहराने की कोशिश करता है।
भारत की सख्त नीति: ऑपरेशन सिंदूर
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 लोग मारे गए थे, ने भारत को आतंकवाद के खिलाफ और सख्त कदम उठाने के लिए मजबूर किया। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा ने ली थी। जवाब में, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत 6-7 मई 2025 को पाकिस्तान और PoK में 9 आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए। इन हमलों में जैश-ए-मोहम्मद का बहावलपुर स्थित मदरसा और लश्कर का मुरीदके स्थित मुख्यालय तबाह हो गया।
भारतीय सेना ने स्पष्ट किया कि ये हमले केवल आतंकी ठिकानों पर किए गए थे और इसमें किसी भी आम नागरिक को नुकसान नहीं पहुंचाया गया। इस ऑपरेशन ने न केवल आतंकी नेटवर्क को भारी नुकसान पहुंचाया, बल्कि पाकिस्तान की उस झूठी कहानी को भी बेनकाब किया, जिसमें वह खुद को आतंकवाद का शिकार बताता है।
भारत ने कूटनीतिक स्तर पर भी कड़े कदम उठाए। सिंधु जल संधि को रद्द करने, पाकिस्तानी नागरिकों को भारत छोड़ने का आदेश देने, और पाकिस्तानी यूट्यूब चैनलों व सोशल मीडिया अकाउंट्स को ब्लॉक करने जैसे कदमों ने पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाया।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इस खुलासे ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान की छवि को और खराब किया। अमेरिका, जिसने हाफिज अब्दुल रऊफ को वैश्विक आतंकी घोषित किया था, ने पाकिस्तान से आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने की मांग की। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने कहा कि यदि पाकिस्तान आतंकवाद में शामिल है, तो उसे भारत के साथ मिलकर कार्रवाई करनी चाहिए।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पहले से ही कमजोर है। उसकी सेना के पास केवल चार दिन की जंग लड़ने लायक हथियार बचे हैं, और उसकी अर्थव्यवस्था कर्ज पर निर्भर है। ऐसे में, आतंकवाद को समर्थन देना पाकिस्तान के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है।
पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता
इस खुलासे ने पाकिस्तान के भीतर भी हलचल मचा दी है। सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर पर आतंकवाद को बढ़ावा देने और देश को युद्ध की ओर धकेलने के आरोप लग रहे हैं। पूर्व पेंटागन अधिकारी माइकल रुबिन ने उनकी तुलना ओसामा बिन लादेन से की और चेतावनी दी कि उनकी नीतियां पाकिस्तान को गृहयुद्ध की ओर ले जा रही हैं।
पाकिस्तानी संसद और जनता में भी असंतोष बढ़ रहा है। जमीयत उलेमा-इस्लाम के नेता मौलाना फजलुर रहमान ने सेना की आलोचना करते हुए 1971 जैसे हालात की चेतावनी दी। सोशल मीडिया पर #MunirOut जैसे ट्रेंड वायरल हो रहे हैं, जो जनता के गुस्से को दर्शाते हैं।
पाकिस्तान का यह ताजा खुलासा एक बार फिर साबित करता है कि वह आतंकवाद को न केवल पनाह देता है, बल्कि उसे धार्मिक और सामाजिक छवियों के पीछे छिपाने की कोशिश भी करता है। हाफिज अब्दुल रऊफ जैसे आतंकियों को “मासूम मौलाना” के रूप में पेश करना न केवल भारत के खिलाफ साजिश है, बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी खतरा है।
भारत ने अपनी आतंकवाद विरोधी नीति को और सख्त करके साफ कर दिया है कि वह किसी भी नापाक मंसूबे को बर्दाश्त नहीं करेगा। ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम इस दिशा में एक मजबूत संदेश हैं। लेकिन इस समस्या का समाधान केवल भारत की कार्रवाइयों तक सीमित नहीं रह सकता। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान पर दबाव डालना होगा ताकि वह आतंकवाद को समर्थन देना बंद करे।
पाकिस्तान को यह समझना होगा कि आतंकवाद का रास्ता न केवल उसके पड़ोसियों के लिए, बल्कि उसके अपने अस्तित्व के लिए भी खतरा है। जब तक वह अपनी नीतियों में सुधार नहीं करता, उसकी विश्वसनीयता और स्थिरता पर सवाल उठते रहेंगे। भारत, अपने मजबूत रुख और कूटनीतिक प्रयासों के साथ, आतंकवाद के खिलाफ इस लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, और यह उम्मीद की जाती है कि वैश्विक समुदाय भी इस मुहिम में उसका साथ देगा।