
13 मई 2025 की सुबह जम्मू के एक छोटे से गांव में आम दिनों की तरह शांति थी। जाकिर हुसैन, एक मेहनती ग्रामीण, अपने घर के पास सड़क पर कुछ जरूरी काम से निकले थे। सुबह का समय था, और गांव की शांत हवा में पक्षियों की चहचहाहट गूंज रही थी। लेकिन यह शांति अचानक एक तेज गर्जना से टूट गई। एक पाकिस्तानी ड्रोन ने जाकिर के पास एक बम गिराया, जिसके विस्फोट ने उनकी जिंदगी को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। धमाके की तीव्रता इतनी थी कि जाकिर का एक पैर पूरी तरह उड़ गया। वह बंकर की ओर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन कुछ कदमों में ही जमीन पर गिर पड़े।
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि धमाके के बाद गांव में एक पल के लिए सन्नाटा छा गया, और फिर चारों ओर चीख-पुकार मच गई। जाकिर की टोपी और उनके आसपास बिखरा मलबा इस भयानक घटना की गवाही दे रहा था। सोशल मीडिया पर इस त्रासदी की तस्वीरें और वीडियो तेजी से वायरल हुए, जिसने पूरे देश का ध्यान इस ओर खींचा। रक्षा सूत्रों के अनुसार, यह हमला भारत-पाकिस्तान सीमा पर बढ़ते तनाव का हिस्सा था, जहां पाकिस्तान द्वारा ड्रोन और मिसाइल हमलों की कोशिशें बार-बार नाकाम की जा रही थीं। भारतीय सेना ने तत्काल जवाबी कार्रवाई शुरू की, लेकिन जाकिर जैसे निर्दोष नागरिकों की जान बचाना असंभव हो गया। यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि युद्ध का सबसे भारी नुकसान आम लोग ही झेलते हैं।
जाकिर हुसैन: एक साधारण इंसान की असाधारण कहानी
जाकिर हुसैन एक मेहनती और सादगी भरा जीवन जीने वाले इंसान थे। 47 साल की उम्र में, वह अपने परिवार का एकमात्र सहारा थे। उनकी पत्नी और तीन छोटी बेटियां—जिनकी उम्र 10 साल से कम थी—उनके इर्द-गिर्द ही उनकी दुनिया घूमती थी। जाकिर खेती-बाड़ी और छोटे-मोटे काम करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। गांव वालों के लिए वह एक मददगार और मिलनसार व्यक्ति थे, जिनकी मुस्कान और सौम्य स्वभाव ने सभी का दिल जीत रखा था।
जाकिर की शादी को 12 साल हो चुके थे, और उनकी बेटियां उनके जीवन का सबसे कीमती हिस्सा थीं। वह अक्सर अपनी बेटियों के भविष्य के बारे में सपने देखते थे। उनकी सबसे बड़ी बेटी स्कूल में पढ़ाई में होशियार थी और डॉक्टर बनने का ख्वाब देखती थी। जाकिर का सपना था कि उनकी बेटियां पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनें और समाज में अपनी पहचान बनाएं। लेकिन उस दिन के धमाके ने उनके सारे सपनों को राख कर दिया। उनकी पत्नी ने बताया कि जाकिर सुबह कुछ जरूरी सामान लाने के लिए घर से निकले थे। कौन जानता था कि यह उनकी जिंदगी की आखिरी सुबह होगी?
परिवार का दर्द और समाज की प्रतिक्रिया
जाकिर की मौत ने उनके परिवार को गहरे दुख के सागर में डुबो दिया। उनकी पत्नी, जो उस भयानक पल को याद करके आज भी कांप उठती हैं, ने कहा, “वह तो चले गए, अब मैं अपनी बेटियों का पालन-पोषण कैसे करूंगी? मेरे पास कुछ नहीं बचा।” उनकी आंखों में आंसुओं के साथ भविष्य का डर साफ दिखाई देता था। तीन छोटी बेटियों की परवरिश, घर का खर्च, और सामाजिक दबाव जैसे सवाल उनके सामने पहाड़ की तरह खड़े हैं। गांव वालों ने परिवार की मदद के लिए हाथ बढ़ाया, लेकिन जाकिर की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता।
जाकिर के भाई, जो उस समय गांव में मौजूद थे, ने दुख और गुस्से के मिश्रित भावों के साथ कहा, “पाकिस्तान को इस हमले का कड़ा जवाब मिलना चाहिए। मेरे भाई ने किसी का क्या बिगाड़ा था? वह तो बस अपने परिवार के लिए जी रहा था।” उनका गुस्सा केवल जाकिर की मौत तक सीमित नहीं था, बल्कि यह उस लगातार तनाव का परिणाम था, जो सीमा पार के हमलों ने पैदा किया। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने जाकिर के भाई की भावनाओं का समर्थन किया और सरकार से कठोर कार्रवाई की मांग की। कई लोगों ने जाकिर के परिवार के लिए आर्थिक मदद की पेशकश भी की।
भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि
जाकिर की मौत कोई अकेली घटना नहीं थी। यह भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव का हिस्सा थी, जो हाल के महीनों में अपने चरम पर पहुंच गया था। अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान और पीओके में 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट किया गया। इस कार्रवाई में 100 से ज्यादा आतंकवादी मारे गए, जिसने पाकिस्तान को बौखला दिया। जवाब में, पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइल हमले शुरू किए। इनमें से एक फतेह-2 मिसाइल को हरियाणा के सिरसा में मार गिराया गया।
रक्षा सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर, पंजाब, और राजस्थान में ड्रोन हमलों की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने इनमें से ज्यादातर को नाकाम कर दिया। फिर भी, कुछ हमले, जैसे जाकिर पर हुआ हमला, निर्दोष नागरिकों को निशाना बना गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान के साथ बातचीत केवल आतंकवाद और पीओके के मुद्दे पर होगी। भारतीय सेना ने नूर खान, शोरकोट, और मुरीद एयरबेस पर जवाबी हमले किए, जिससे पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ।
यह तनाव केवल सैन्य कार्रवाइयों तक सीमित नहीं रहा। भारत ने सिंधु जल संधि पर रोक लगाई और पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए। पाकिस्तान ने इसे “युद्ध की कार्रवाई” करार देते हुए परमाणु हमले की धमकी दी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत का साथ दिया।
न्याय की मांग और भविष्य की राह
जाकिर की मौत ने एक बार फिर यह सवाल उठाया कि युद्ध और आतंकवाद का खामियाजा आम आदमी को ही क्यों भुगतना पड़ता है? उनके परिवार और गांव वालों की मांग है कि इस हमले की सजा पाकिस्तान को मिले। सोशल मीडिया पर लोग जाकिर के परिवार के लिए आर्थिक मदद और सरकार से कठोर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि सीमा पर तनाव का असर केवल सैनिकों तक नहीं, बल्कि आम नागरिकों तक पहुंचता है। सरकार को न केवल जवाबी कार्रवाई पर ध्यान देना होगा, बल्कि प्रभावित परिवारों के लिए सहायता योजनाएं भी शुरू करनी होंगी। जाकिर की बेटियों की शिक्षा और उनके परिवार की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना समय की मांग है। साथ ही, भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है, ताकि ऐसी त्रासदियां दोबारा न हों।
जाकिर हुसैन की मौत केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान तनाव का एक दुखद प्रतीक है। उनकी पत्नी का सवाल, “अब बच्चे कौन पालेगा?” और उनके भाई का गुस्सा, “पाकिस्तान को जवाब मिले,” हर उस व्यक्ति की भावनाओं को दर्शाता है जो इस संघर्ष से प्रभावित है। यह त्रासदी हमें याद दिलाती है कि युद्ध का सबसे बड़ा नुकसान मानवता को होता है। सरकार, समाज, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मिलकर न केवल जाकिर जैसे पीड़ितों के परिवारों की मदद करनी होगी, बल्कि शांति की दिशा में भी काम करना होगा। जाकिर की बेटियों के सपनों को साकार करना ही उनके बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।