
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कथन, “टेरर और ट्रेड एक साथ नहीं चल सकते, पानी और खून भी एक साथ नहीं बह सकते,” एक गहन और विचारोत्तेजक विचार है। यह कथन न केवल भारत की शांति और समृद्धि के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर आतंकवाद और हिंसा के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी देता है। यह कथन दो परस्पर विरोधी तत्वों—आतंकवाद और व्यापार, पानी और खून—के बीच असंगति को उजागर करता है। यह लेख इस कथन के गहरे अर्थ को समझने और इसके भारत और विश्व के संदर्भ में प्रभाव को विश्लेषण करने का प्रयास करता है।
आतंकवाद और व्यापार: परस्पर विरोधी ध्रुव
आतंकवाद और व्यापार दो ऐसे पहलू हैं जो एक-दूसरे के साथ कभी सामंजस्य नहीं बिठा सकते। आतंकवाद भय, अस्थिरता और विनाश का प्रतीक है, जबकि व्यापार विश्वास, सहयोग और आर्थिक प्रगति का आधार है। आतंकवादी गतिविधियां किसी भी क्षेत्र की आर्थिक संरचना को कमजोर करती हैं। निवेशक जोखिम से बचते हैं, उद्योग ठप हो जाते हैं, और रोजगार के अवसर सिमटने लगते हैं। भारत के संदर्भ में, जम्मू-कश्मीर इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। दशकों तक आतंकवाद ने इस क्षेत्र के पर्यटन और स्थानीय व्यापार को गहरी क्षति पहुंचाई। हालांकि, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, इस क्षेत्र में शांति और आर्थिक विकास की नई संभावनाएं उभरी हैं। यह दर्शाता है कि आतंकवाद का अंत ही समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
वैश्विक स्तर पर भी यह सत्य लागू होता है। मध्य पूर्व के देश जैसे सीरिया और यमन आतंकवादी संगठनों और गृहयुद्ध के कारण आर्थिक रूप से तबाह हो चुके हैं। इन देशों में तेल और अन्य उद्योग, जो कभी उनकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे, हिंसा के कारण ठप हो गए। इसके विपरीत, सिंगापुर और जापान जैसे शांतिपूर्ण देशों ने व्यापार और नवाचार के बल पर वैश्विक मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। आतंकवाद न केवल भौतिक क्षति पहुंचाता है, बल्कि सामाजिक विश्वास को भी नष्ट करता है, जो व्यापारिक गतिविधियों के लिए आवश्यक है।
आतंकवाद का एक और महत्वपूर्ण प्रभाव वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर पड़ता है। समुद्री डकैती और आतंकवादी हमले व्यापार मार्गों को असुरक्षित बनाते हैं। उदाहरण के लिए, अदन की खाड़ी में सोमालियाई समुद्री डाकुओं के हमलों ने वैश्विक व्यापार को प्रभावित किया है। ऐसे में कंपनियां वैकल्पिक मार्ग अपनाती हैं, जिससे लागत बढ़ती है और उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ पड़ता है। भारत, जो अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक व्यापार से जोड़ रहा है, आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने को मजबूर है, क्योंकि यह उसकी आर्थिक महत्वाकांक्षाओं के लिए सीधा खतरा है।
इसके अतिरिक्त, आतंकवाद का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी गहरा होता है। जब लोग डर के साये में जीते हैं, तो वे उद्यमिता और नवाचार से हिचकिचाते हैं। एक उद्यमी को नए व्यवसाय शुरू करने के लिए स्थिरता और सुरक्षा की आवश्यकता होती है। आतंकवाद इस विश्वास को नष्ट करता है, जिसके बिना कोई अर्थव्यवस्था फल-फूल नहीं सकती। इस प्रकार, आतंकवाद और व्यापार का सह-अस्तित्व असंभव है।
पानी और खून: जीवन और विनाश का प्रतीक
कथन का दूसरा भाग, “पानी और खून भी एक साथ नहीं बह सकते,” एक गहरा प्रतीकात्मक और वास्तविक अर्थ रखता है। पानी जीवन, शांति और निरंतरता का प्रतीक है। यह नदियों, झीलों और वर्षा के रूप में मानव सभ्यता को पोषित करता है। दूसरी ओर, खून हिंसा, युद्ध और मानवीय त्रासदी का प्रतीक है। जब पानी और खून एक साथ बहते हैं, तो यह मानवता के लिए एक चेतावनी है कि जीवन और विनाश एक साथ नहीं चल सकते।
इस कथन को संसाधनों के लिए संघर्ष के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। पानी, जो जीवन का आधार है, कई क्षेत्रों में संघर्ष का कारण बन चुका है। भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लेकर समय-समय पर तनाव उभरता रहता है। यदि यह तनाव हिंसा में बदल जाए, तो पानी, जो जीवन देता है, खून के साथ बहने लगेगा। यह स्थिति दोनों देशों और पूरे क्षेत्र के लिए विनाशकारी हो सकती है।
वैश्विक स्तर पर भी जल संसाधनों के लिए संघर्ष बढ़ रहे हैं। नील नदी पर इथियोपिया, सूडान और मिस्र के बीच विवाद इसका एक उदाहरण है। जलवायु परिवर्तन ने पानी की कमी को और गंभीर बना दिया है, जिसके कारण कई क्षेत्रों में हिंसा और अस्थिरता बढ़ रही है। यदि इन विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से हल नहीं किया गया, तो पानी और खून का प्रतीक वास्तविकता बन सकता है।
पानी और खून का प्रतीक मानवीय त्रासदी को भी दर्शाता है। आतंकवादी हमलों और युद्धों में हजारों निर्दोष लोग अपनी जान गंवाते हैं। यमन और अफगानिस्तान जैसे देशों में हिंसा ने पानी और भोजन जैसे बुनियादी संसाधनों को दुर्लभ कर दिया है। इस प्रकार, पानी और खून का एक साथ बहना मानवता के लिए एक त्रासदी है, जिसे रोका जाना चाहिए।
इस प्रतीक का एक और आयाम सामाजिक एकता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहां विभिन्न धर्म, संस्कृतियां और भाषाएं एक साथ रहती हैं, सामाजिक सद्भाव वह पानी है जो देश को पोषित करता है। आतंकवाद और हिंसा इस सद्भाव को खून से रंग देते हैं, जिससे विकास और प्रगति रुक जाती है।
भारत का दृष्टिकोण और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
भारत ने आतंकवाद के खिलाफ हमेशा कड़ा रुख अपनाया है। 2008 के मुंबई हमले और 2019 के पुलवामा हमले जैसे घटनाओं ने भारत की आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति को और मजबूत किया है। साथ ही, भारत ने व्यापार और आर्थिक विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियान इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। भारत का यह दृष्टिकोण स्पष्ट है: आतंकवाद का उन्मूलन ही समृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
वैश्विक मंच पर भी भारत ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता का आह्वान किया है। संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर भारत ने आतंकवाद को परिभाषित करने और उसका मुकाबला करने के लिए कई प्रस्ताव पेश किए हैं। हालांकि, कुछ देश आतंकवाद को समर्थन देने वाली नीतियों को अपनाते हैं, जो वैश्विक शांति और व्यापार के लिए चुनौती है। भारत ने अपनी कूटनीति के माध्यम से इस मुद्दे को बार-बार उठाया है और दक्षिण एशिया में शांति और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सार्क और बिम्सटेक जैसे संगठनों के साथ काम किया है।
वैश्विक व्यापार के संदर्भ में, भारत ने निवेशकों को यह संदेश दिया है कि वह एक सुरक्षित और स्थिर गंतव्य है। ‘विश्व गुरु’ बनने की भारत की महत्वाकांक्षा तभी साकार हो सकती है, जब आतंकवाद और हिंसा का पूरी तरह से उन्मूलन हो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कथन, “टेरर और ट्रेड एक साथ नहीं चल सकते, पानी और खून भी एक साथ नहीं बह सकते,” एक गहरी सच्चाई को उजागर करता है। आतंकवाद और हिंसा न केवल मानव जीवन को नष्ट करते हैं, बल्कि आर्थिक प्रगति और सामाजिक एकता को भी कमजोर करते हैं। भारत और विश्व को एक ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है, जहां शांति और सहयोग प्राथमिकता हों। पानी, जो जीवन का स्रोत है, तभी स्वच्छ और मुक्त रूप से बह सकता है, जब खून का प्रवाह रुक जाए। भारत का आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख और व्यापार पर जोर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। वैश्विक समुदाय को भी इस दृष्टिकोण को अपनाना होगा, ताकि एक ऐसी दुनिया का निर्माण हो, जहां शांति और समृद्धि एक साथ फलें-फूलें।