
हाल के वर्षों में, मध्य पूर्व क्षेत्र में ईरान और इसराइल के बीच तनाव और संघर्ष ने वैश्विक मंच पर चर्चा का केंद्र बना हुआ है। यह क्षेत्र पहले से ही भू-राजनीतिक जटिलताओं और सांस्कृतिक विविधताओं का गढ़ रहा है, और अब यह एक बार फिर युद्ध की आशंकाओं के साये में है। इस तनाव का असर न केवल इन दोनों देशों तक सीमित है, बल्कि यह वहां रहने वाले विदेशी नागरिकों, विशेषकर भारतीय समुदाय पर भी पड़ रहा है। भारत, जिसके दोनों देशों के साथ ऐतिहासिक और आर्थिक संबंध हैं, इस क्षेत्र में अपने नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण को लेकर चिंतित है। इस लेख में, हम ईरान और इसराइल में रहने वाले भारतीयों की वर्तमान स्थिति, उनके सामने आने वाली चुनौतियों और भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का विश्लेषण करेंगे।
ईरान और इसराइल में भारतीय समुदाय का परिदृश्य
भारत और मध्य पूर्व के बीच सांस्कृतिक, व्यापारिक और धार्मिक संबंध सदियों पुराने हैं। ईरान और इसराइल में भारतीय समुदाय की मौजूदगी, हालांकि संख्या में अपेक्षाकृत कम है, फिर भी महत्वपूर्ण है।
ईरान में भारतीय
ईरान में भारतीय समुदाय की संख्या लगभग 4,000 से 5,000 के बीच मानी जाती है। इनमें से अधिकांश लोग व्यापारी, पेशेवर, और छात्र हैं। तेहरान, मशहद और इस्फहान जैसे शहरों में भारतीय परिवार दशकों से रह रहे हैं। ईरान में भारतीय व्यापारी मुख्य रूप से कालीन, मसाले, और कपड़ा व्यापार में सक्रिय हैं। इसके अलावा, कई भारतीय छात्र ईरानी विश्वविद्यालयों में चिकित्सा और इंजीनियरिंग जैसे पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने के लिए आते हैं, क्योंकि यहां शिक्षा सस्ती और गुणवत्तापूर्ण है।
ईरान में भारतीय समुदाय ने स्थानीय संस्कृति के साथ सामंजस्य स्थापित किया है। भारतीय दूतावास और सांस्कृतिक केंद्र, जैसे तेहरान में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने और समुदाय को एकजुट रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इसराइल में भारतीय
इसराइल में भारतीय समुदाय की संख्या लगभग 12,000 से 15,000 के बीच है। यह समुदाय मुख्य रूप से तकनीकी पेशेवरों, वैज्ञानिकों, और देखभाल करने वाले कर्मचारियों (केयरगिवर्स) से मिलकर बना है। तेल अवीव, हाइफा, और यरुशलम जैसे शहरों में भारतीय समुदाय सक्रिय है। इसके अलावा, इसराइल में भारतीय यहूदी समुदाय, जैसे कि बेने इसराइल और कोचीन यहूदी, भी मौजूद हैं, जो भारत से दशकों पहले प्रवास कर चुके हैं।
इसराइल की तकनीकी और स्टार्टअप संस्कृति ने कई भारतीय इंजीनियरों और आईटी पेशेवरों को आकर्षित किया है। भारतीय देखभाल कर्मचारी, विशेष रूप से केरल और पूर्वोत्तर भारत से, बुजुर्गों की देखभाल के लिए इसराइल में कार्यरत हैं। भारतीय समुदाय ने इसराइल में सांस्कृतिक संगठनों और मंदिरों के माध्यम से अपनी पहचान बनाए रखी है।
ईरान-इसराइल संघर्ष का प्रभाव
ईरान और इसराइल के बीच तनाव का इतिहास जटिल और बहुआयामी है। हाल के वर्षों में, क्षेत्रीय प्रभाव, परमाणु कार्यक्रम, और प्रॉक्सी युद्धों को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है। इस तनाव का असर दोनों देशों में रहने वाले भारतीयों पर भी पड़ रहा है।
ईरान में भारतीयों की चुनौतियां
ईरान पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और आर्थिक अस्थिरता ने वहां रहने वाले भारतीयों के लिए कई समस्याएं खड़ी की हैं। मुद्रा का अवमूल्यन और बढ़ती महंगाई ने व्यापारियों के लिए मुनाफा कमाना मुश्किल कर दिया है। इसके अलावा, ईरान और इसराइल के बीच सैन्य तनाव ने सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।
हालांकि, अभी तक ईरान में भारतीयों के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष खतरा सामने नहीं आया है, लेकिन युद्ध की आशंका ने कई भारतीय परिवारों को वापस भारत लौटने पर विचार करने के लिए मजबूर किया है। भारतीय दूतावास ने नागरिकों को सतर्क रहने और आपातकालीन स्थिति के लिए तैयार रहने की सलाह दी है।
इसराइल में भारतीयों की चुनौतियां
इसराइल में रहने वाले भारतीयों को भी तनाव का सामना करना पड़ रहा है। इसराइल पर रॉकेट हमलों और सैन्य कार्रवाइयों की आशंका ने वहां के नागरिकों, विशेषकर विदेशियों, में डर का माहौल पैदा किया है। तेल अवीव और अन्य प्रमुख शहरों में बम शेल्टर और सायरन की प्रणाली सामान्य है, लेकिन यह विदेशी नागरिकों, विशेषकर नए आए भारतीयों, के लिए तनावपूर्ण हो सकता है।
इसके अलावा, इसराइल में रहने की लागत पहले से ही बहुत अधिक है, और युद्ध की स्थिति में आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और कीमतों में वृद्धि ने भारतीय समुदाय के लिए आर्थिक दबाव बढ़ाया है। हालांकि, इसराइल में भारतीय दूतावास और स्थानीय संगठनों ने समुदाय को सुरक्षा और सहायता प्रदान करने के लिए सक्रिय कदम उठाए हैं।
भारत सरकार की भूमिका
भारत सरकार ने दोनों देशों में रहने वाले अपने नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। विदेश मंत्रालय ने ईरान और इसराइल में भारतीय दूतावासों के माध्यम से स्थिति पर नजर रखी है और नागरिकों को समय-समय पर परामर्श जारी किए हैं।
ईरान में कदम
ईरान में भारतीय दूतावास ने भारतीय नागरिकों के लिए 24/7 हेल्पलाइन शुरू की है। इसके अलावा, दूतावास ने नागरिकों को पंजीकरण करने और अपनी यात्रा योजनाओं को साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया है ताकि आपातकालीन स्थिति में त्वरित कार्रवाई की जा सके। भारत ने अतीत में, जैसे कि 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान, अपने नागरिकों को सुरक्षित निकालने में सफलता हासिल की थी, और वर्तमान में भी ऐसी तैयारियां चल रही हैं।
इसराइल में कदम
इसराइल में भारतीय दूतावास ने नागरिकों को बम शेल्टर और सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में जागरूक किया है। दूतावास ने यह भी सुनिश्चित किया है कि भारतीय समुदाय को आवश्यक सहायता, जैसे कि काउंसलिंग और वित्तीय सहायता, उपलब्ध हो। इसके अलावा, भारत और इसराइल के बीच मजबूत कूटनीतिक संबंधों ने इस प्रक्रिया को और आसान बनाया है।
भविष्य की संभावनाएं
ईरान और इसराइल के बीच तनाव का समाधान निकट भविष्य में संभावना कम दिखाई देता है। इस स्थिति में, भारतीय समुदाय को स्थानीय परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाने और सतर्क रहने की आवश्यकता है। भारत सरकार की ओर से उठाए गए कदम और दोनों देशों के साथ भारत के मजबूत संबंध इस संकट के दौरान भारतीयों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होंगे।
इसके अलावा, भारतीय समुदाय को भी एकजुट रहने और स्थानीय प्रशासन के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है। सांस्कृतिक और सामुदायिक संगठनों की भूमिका इस दौरान महत्वपूर्ण हो सकती है, जो न केवल मनोबल बढ़ाने में मदद करेंगे, बल्कि आपातकालीन स्थिति में सहायता भी प्रदान कर सकते हैं।
ईरान और इसराइल में चल रहे संघर्ष ने वहां रहने वाले भारतीयों के लिए कई चुनौतियां खड़ी की हैं। आर्थिक अस्थिरता, सुरक्षा चिंताएं, और युद्ध की आशंका ने उनके जीवन को प्रभावित किया है। हालांकि, भारतीय समुदाय ने अपनी लचीलापन और अनुकूलन क्षमता के साथ इन परिस्थितियों का सामना किया है। भारत सरकार की सक्रियता और दूतावासों की तत्परता ने इस संकट में भारतीयों को आश्वस्त किया है।
मध्य पूर्व में शांति की स्थापना न केवल इस क्षेत्र के लिए, बल्कि वहां रहने वाले सभी विदेशी नागरिकों, विशेषकर भारतीयों, के लिए भी महत्वपूर्ण है। जब तक यह तनाव बना रहेगा, भारतीय समुदाय को सतर्कता, एकजुटता, और सरकार के समर्थन के साथ इस चुनौतीपूर्ण समय का सामना करना होगा।